सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
जिस आचरण का पालन करने से जीवन में उन्नति होती है तथा आध्यात्मिक जगत को जानकर शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है उसी को धर्म कहा गया है__
'धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधः दशकं धर्म लक्षणम्।।'
जो मनुष्य धर्म को जान लेता है उस मनुष्य में धैर्य, क्षमा, दया, अलोभ, अक्रोध, मनवाणी में एकता, इन्द्रिय में संयम, झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना और उत्तम विद्या यानि धर्म के दस लक्षण, अपने आप ही प्रकट हो जाते हैं।
मनुष्य का शरीर एक पवित्र मंदिर है, जिसमें परमेश्वर अपनी सम्पूर्णता के साथ प्रतिष्ठित है।
श्रीरामचरित मानस में कहा गया है__
'धरमु न दूसर सत्य समाना ।
आगम निगम पुराण बखाना।।'
संसार में सत्य के सिवाय अन्य कोई धर्म नहीं है।
सभी धार्मिक ग्रंथ पुराण आदि यही कहते हैं।
लेकिन जो व्यक्ति धर्म से हीन है, उसके बारे में कहा गया है__ धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ।
धर्म को न जानने के कारण ही आज मनुष्य पशुवत आचरण करता है।
**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
