**संसार की वस्तुएं तभी सार्थक हो सकती है जब जीवन की वास्तविकता को जान लिया जाए।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

इस जीवन का कोई समय निश्चित नहीं कि कब खत्म हो जाए। श्रीमद्भगवत् गीता में कहा गयाहै_

 'दुर्लभो मानुषो देहो देहीनां क्षणभंगुर:'

मनुष्य तन की प्राप्ति बहुत

मुश्किल है और फिर इसे क्षणभंगुर भी बताया गया है, पानी के बुलबुले के समान। इसलिए महापुरुष कहते हैं__

'हे मानव, जाग जा। दिन या रात का विचार न कर, क्योंकि तेरी उम्र क्षण प्रतिक्षण घट रही है। जिस प्रकार घड़ा फूट जाता है और पानी बिखर जाता है, उसी तरह तेरा जीवन भी नष्ट हो रहा है।'

अतः हमें चाहिए कि हम इस शरीर के समाप्त होने से पहले ही इस शरीर का लाभ उठाते हुए जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करें।

हम प्रतिदिन देखते हैं कि जीव शरीर छोड़कर गया तो साथ में कुछ भी नहीं ले गया। फिर भी हम बहुत कुछ संभाले हुए हैं। संसार की वस्तुएं भी तभी सार्थक हो सकती है जब जीवन की वास्तविकता को जान लिया जाए।

गुरवाणी में कहते हैं__ 'कोई बहुत सुंदर हो और ऊँचे कुल वाला भी। चाहे चारो दिशाओं में यश फैला हो, सांसारिक ज्ञान भी हो और धन की भी कमी न हो। परंतु यदि प्रभु को नहीं जाना, उनसे प्रेम नहीं तो वह एक मृतक के समान ही है।' महापुरुष कहते हैं__

'तमेव विदित्वाति मृत्युमेति'

उस सत्य को जानकर ही मृत्यु सागर से पार पहुंचा जा सकता है।

  **ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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