सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
गुरवाणी में गुरु तेगबहादुरजी कहते हैं__
हे प्राणी, नारायण को जानने का प्रयास कर। तेरी उम्र हर क्षण घट रही है। कहीं ऐसा न हो कि यह शरीर व्यर्थ ही नष्ट हो जाए। कहते हैं कि जीव, जवानी को विषय विकारों में नष्ट कर लेता है और बालपन अज्ञानता में ही व्यतीत हो जाता है। वृद्ध हो गया, परंतु अभी भी विचार नहीं किया। इस बुद्धि को कहाँ उलझाए बैठा है। परमात्मा ने तुझ पर कृपा करके मानव तन दिया है। यह शरीर केवल प्रभु की कृपा से ही प्राप्त होता है।
श्रीरामचरितमानस में कहा है__
'कबहुँक करि करुना नर देही।
देत ईस बिनु हेतु सनेही।।'
ईश्वर ने बिना किसी हेतु के अपनी करुणा के कारण तुझे मानव तन दिया है। परंतु मानव ने क्या किया। जिस परमात्मा ने मानव तन दिया, उसी परमात्मा को भुला दिया। हे मानव, तू किस माया के मद में भूला हुआ है, इनमे से कुछ भी तेरे साथ नहीं जाएगा।
इसलिए गुरु तेगबहादुरजी कहते हैं_ 'उस प्रभु को याद कर, जो तेरी सभी चिंताओं-परेशानियों
को दूर करके तेरा सहायक सिद्ध होगा।'
**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
