**संसार में संतों ने उसी को जीवित माना है जिसके हृदय में प्रभु का निवास है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

इस जगत में उसी का जन्म सफल है जो संतों की संगत के साथ मिलकर प्रभु के नाम का सुमिरन करता है। ऐसे व्यक्तियों के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं जिन पर प्रभु की कृपा हो जाती है।

यह संसार तो नश्वर है, दुखों का घर है। चिंताओं परेशानियों एवं विषय-वासनाओं से भरपूर है।

परंतु वह कौन सा स्थान है जहाँ पहुँच कर हम जन्म मरण एवं विषय-वासनाओं की परेशानियों से परे पहुँच सकते हैं। जरूरत है उस घर को पहचानने की। संत कबीरदास कहते हैं__

'जिस मृत्यु के नाम से सभी भयभीत हो जाते हैं, मैं उसी मृत्यु का नाम सुनकर प्रसन्न होता हूँ, क्योंकि मरने के उपरांत ही मैं उस परमानन्द में ही लीन रहकर (जन्म मरण के बंधन से मुक्त 

होकर) शाश्वत जीवन की प्राप्ति कर सकता हूँ।'

इसीलिए कहा गया है कि__

'सो जीविया जिसु मनि वसिया सोय ।

 नानक अवर न जीवे कोय।।'

संसार में संतों ने उसी को जीवित माना है जिसके हृदय में प्रभु का निवास है।

**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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