**हमें कर्म काण्डों में न उलझकर उस सत्य को जानना चाहिए, जिस सत्य की महिमा सभी संत महापुरुषों ने गाई है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

विनय पत्रिका में कहा गया है कि __

'वाक्य ज्ञान अत्यंत निपुन, भव पार न पावे कोई।

 निसि गृहमध्य दीप की बातंह,  तम निवृत न होई।।'

जिस प्रकार अंधरे घर में दीपक की बातें करने मात्र से अंधकार दूर नहीं हो सकता। उसी प्रकार वाणी की चतुरता या वाक्य की निपुणता के द्वारा चाहे परमात्मा की कितनी भी महिमा क्यों न गा लें, मनुष्य का कल्याण नहीं हो

सकता।

कहा गया है__'सा विद्या या विमुक्तये।'

विद्या वही है जो हमें मुक्ति प्रदान करती है और विद्वान वही है जो उस विद्या को जानता है।

विवेक चूड़ामणि में आदिशंकराचार्य कहते हैं__

'वदंतु शास्त्राणि यजंतु देवान् कुर्वन्तु कर्माणि भजंतु देवताः।

आत्मैक्यबोधेन विना विमुक्तिर्न सिध्यते ब्रह्मशतांतरेपि।।'

    चाहे कितने भी धर्मशास्त्रों को कण्ठस्थ कर पाठी पंडित, पुरोहित उसका व्याख्यान करें, चाहे यज्ञों द्वारा देवताओं को प्रसन्न कर लें, चाहे कितने भी शुभ कर्म किया करें, परंतु आत्मतत्व को जाने बिना मुक्ति नहीं हो सकती, चाहे सौ ब्रह्माओं की आयु क्यों न बीत जाए।

कहने का तात्पर्य कि आज हमें  कर्म-काण्डों में न उलझ कर उस सत्य को जानना चाहिए, जिस सत्य की महिमा सभी संत महापुरुषों ने गाई है।

**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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