**ब्रह्म को जानने की जिज्ञासा रखने वाले जिज्ञासु को आत्म तत्त्व की ही अनुभूति प्राप्त करना चाहिए।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

ईश्वर कण-कण में विद्यमान हैं, केवल इसे स्वीकार करना ही मानव के लिए पर्याप्त नहीं है अपितु यह तो एक संदेश है। ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है। हमें सुख शांति की प्राप्ति किन्ही सम्प्रदाय या मत-मतान्तरों द्वारा सम्भव नहीं है। इनके द्वारा मनुष्य और उलझ जाता है, क्योंकि परमात्मा बुद्धि गम्य नहीं, उसे  ज्ञानगम्य कहा

गया है__

 'ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्' (गीता 13-17)

वह ज्ञान  जो जानने योग्य है, वह तत्वज्ञान के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है जो सभी के हृदय में है।

गुरवाणी में कबीरजी कहते हैं कि जहाँ पर ज्ञान, यानि ब्रह्मज्ञान है, वहीं धर्म है।

धर्म को हम शब्दों के द्वारा नहीं समझ सकते। विवेक चूड़ामणि में आदि शंकराचार्य कहते हैं__

'शब्द जालं महारण्यं चित्तभ्रमण कारणम्'

शब्द का जाल घने जंगल की भांति है जो हमारे चित्त को भटकाता है।

इसलिए ब्रह्म को जानने की जिज्ञासा रखने वाले

जिज्ञासु को आत्मतत्त्व की ही अनुभूति प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए ।

  **ओम् श्रीआशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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