सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक बार श्री वल्लभाचार्य जी को यह समाचार मिला कि विजयनगर में एक आध्यात्मिक महासभा का आयोजन किया गया है! इस महासभा में ब्रह्म के रूप को लेकर चर्चा होगी!समाचार सुनकर श्री वल्लभाचार्य भी सभा में पहुंच गए! यहां उन्होंने देखा कि काफी दिनों से विद्वान बहस कर रहे हैं कि ब्रह्म साकार है या निराकार? जब समाधान निकलता नजर नहीं आया, तब वल्लभाचार्य जी सभा के मध्य खड़े होकर बुलंद स्वर में बोले शास्त्रों के अनुसार ब्रह्म दोनों रूपों में होता है!ब्रह्म रूपवान भी है और रूपातीत भी है! ब्रह्म साकार भी है और निराकार भी है! ब्रह्म के दो रूप हैं- सकल और सूक्ष्म, नश्वर और अविनाशी, सीमित और असीमित, स्थिर ओर गतिशील, प्रकट और अप्रकट! ब्रह्म चल भी है अचल भी है! ब्रह्म हमसे बहुत दूर भी है और हमारे बहुत पास भी है! ब्रह्म हमारे भीतर भी है और बाहर भी विद्यमान है! आज विज्ञान भी यह मानता है कि हर वस्तु के दो रूप होते हैं- एक पदार्थ और दूसरा ऊर्जा! पदार्थ साकार रूप को दर्शाता है और उर्जा निराकार रूप का प्रतीक है! इसलिए ब्रह्म रूपातीत भी है और रूपवान भी है!
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
