सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीअध्यात्म ही भारत का मर्मस्थल है। इसकी सांस्कृतिक देह का मेरूदंड है। जहां उक्त राष्ट्रों की संस्कृतियां प्रधानतया भौतिकवादी, भोगप्रधान एवं बहिर्मुखी है। वहीं भारतीय संस्कृति मूलतः शाश्वत तत्त्व के बोध और तपःपूत ज्ञान पर आधारित है। इसकी जीवन-पद्धति का एकमेव स्रोत है- अध्यात्म! उदयकाल से ही उसने दैहिक प्रदर्शनों की अपेक्षा अंतर्वृतियों पर जोर दिया है। भारत ने अध्यात्म के संबल पर अपना अधिकार नहीं जमाया।बल्कि विश्व के सुदूर प्रांतों को भी इसका रसास्वादन कराया है।
अन्य प्रांतों में ईश्वर के पुत्र (Son of God) आए। खुदा के पैगम्बर आए। किंतु भारत में भगवान राम, भगवान कृष्ण,भगवान बुद्ध आदि रूपों में साक्षात् ईश्वर ही साकार हो आए। भारत में उसका बारम्बार अवतरण प्रमाणित करता है कि यह राष्ट्र विश्व देह का हृदय है। अब प्रश्न है कि ऐसा क्योंकर हुआ? इसके तीन मुख्य कारण हैं__
1. इसकी आदिकालिक भूमि ने ब्रह्मनिष्ठ ऋषिगणों का चरण स्पर्श पाया था।
2. भौतिक पर्यावरण का महत् योगदान रहा। पश्चिमी देश शीतप्रधान है। अरब प्रांत में अधिक गर्मी पड़ती है।
3. भास्करदेव की भी भारत पर विशिष्ट अनुकम्पा रही। सूर्य की सातवीं किरण दैवी-भावमूलक होती है।अध्यात्म, त्याग, संयम आदि सद्गुणों की सर्जक है। यह किरण भारतवर्ष पर ही अपनी स्वर्णिम छटा बिखेरती है।
अतः ऋषिप्रणीत सांस्कृतिक धरोहरों, प्रकृति तथा सूर्यदेव के कृपामयी आशीषों ने ही भारत को मूल-रूप से देवभूमि बनाया ।
**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
