**ईश्वर को बाहर की बजाय अपने भीतर ही ढूंढ़ें, यहीं उनका निवास स्थान है।**

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                   श्री आर सी सिंह जी 

संसार का कोई भी क्षेत्र, कोई भी विद्या हो, प्रयोगात्मक विज्ञान ही सफलता का मार्ग प्रसस्त करता है। एक विज्ञान के विद्यार्थी के लिए केवल कुछेक वैज्ञानिक समीकरणों व सिद्धांतों का पठन पाठन करना पर्याप्त नहीं है। अपितु प्रयोगशाला में जाकर प्रयोगात्मक परीक्षण करना भी उसके लिए उतना ही अनिवार्य है।

   जब जीवन के प्रत्येक व्यवहारिक क्षेत्र में सफलता का सूत्र अनुभव जन्य प्रयोगात्मक ज्ञान है, फिर अध्यात्म के क्षेत्र में क्यों नहीं?

 अध्यात्म तो विज्ञानों का विज्ञान है, सभी विद्याओं का उद्गम स्रोत है। आध्यात्मिक विद्या की पूर्णता भी तभी संभव है जब हम इस देह रूपी

प्रयोगशाला में, सत्गुरु रूपी प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में परमात्मा का प्रत्यक्ष साक्षात्कार कर लेंगे।

   शरीर परमात्मा का मंदिर है। चाहे वह परमात्मा सर्वव्यापक है, सृष्टि के कण कण में है, किंतु जिस किसी ने भी उसका दर्शन किया तो अपने शरीर के भीतर ही किया। हम इन चर्मचक्षुओं के द्वारा परमात्मा को नहीं देख सकते। उसे केवल दिव्य चक्षु के द्वारा अपने भीतर ही देखा जा सकता है।

  वास्तव में मंदिर, गुरूद्वारा, मस्जिद, गिरजाघर इत्यादि मनुष्य के भीतर स्थित धार्मिक स्थल की ओर संकेत करते हैं। बाह्य धार्मिक स्थल तो मात्र प्रतीक हैं। यह शरीर रूपी मंदिर परमात्मा ने स्वयं बनाया है। और इस मंदिर के अंदर जिसने भी ढूंढ़ा उसे मायूस नहीं होना पड़ा।

   गुरु नानक देव जी कहते हैं - जिस जगह से हरि की प्राप्ति होती है, वही हरि मंदिर है, अर्थात परमात्मा का घर है। इसलिए उस ईश्वर को बाहर की बजाय भीतर ही ढूंढ़ें। यही उनका निवास स्थान है।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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