सोचता हूं ।

 

                 श्री हनुमान प्रसाद चौबे

                 न्याय दर्शन के सिद्धांंत के

                अनुसार "यत्कृतकंतदनित्यं

                 "अर्थात् जो रचना होती हैं,

जो बनती है,वह नष्ट होती है,वह बिगड़ती है,वह अनित्य होती है ‌‌। जैसे 

मकान,सड़क,मोटर आदि बनते हैं, इसलिए वे बिगड़ते हैं, नष्ट हो जाते हैं। जीव-जंतु पैदा होते हैं 

इसलिए वे मर जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं ‌, अनित्य हैं। कर्ता/बनाने वाला/रचना करने वाला हमेशा नित्य,अविनाशी होता है और उसकी रचना/कर्म/निर्माण सदा अनित्य, नश्वर तथा विनाशी होता है ‌।यह सारा संसार एक कर्म/रचना/निर्माण है , अतः यह सारा संसार नष्ट होने वाला नश्वर है। परंतु इसका निर्माता/कर्ता/रचयिता ईश्वर नित्य 

और अविनाशी है। इसीलिए तो भगवान् शंकर 

पार्वती/उमा से नश्वर संसार को छोडकर सत्य तथा नित्य ईश्वर को 

भजने के लिए कहते हैं---

उमा कहहुं मैं

अनुभव अपना।

सतिहरिभजनु

जगत सब सपना।।

रामचरितमानस अ०कांड

Post a Comment

Previous Post Next Post