सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
प्रत्येक वह विचार जो आपका उत्थान करे, वह सकारात्मक है। प्रत्येक वह विचार जो आपको पतन की खाइयों मे धकेल दे, वह नकारात्मक है। सकारात्मक विचार आपकी आंतरिक क्षमताओं को
जाग्रत करते हैं, नकारात्मक विचार आपकी क्षमताओं व उत्साह को समाप्त कर देते हैं।
आपने भस्मासुर का नाम सुना होगा, पर शायद
सतायुद्ध का नहीं। सतायुद्ध भस्मासुर का ही भाई था।
दोनो ने घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने वर मांगने को कहा। भस्मासुर ने मांग की_ मुझे वर दीजिए कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूं वह भस्म हो जाए। यह नकारात्मक सोच की पराकाष्ठा है।
वहीं सतायुद्ध ने प्रार्थना की_ मुझे वर दीजिए कि मैं
जिसके भी सिर पर हाथ रखूं, वह स्वस्थ हो जाए, उसके दुख संताप समाप्त हो जाएं। यह वही प्रार्थना थी, जो हमारे ऋषियों ने की__
"सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दु:ख भागभवेत्।।"
यह सकारात्मक सोच की पराकाष्ठा है।
जब हमारी सोच
सकारात्मक होती है, तो दृष्टि भी पवित्र हो जाती है। वहीं, नकारात्मक सोच हमारी आंखों पर काला पर्दा डाल देती है। हमें हर किसी में कमी, बुराई व अवगुण दिखाई पड़ते हैं।
आज का मनोविज्ञान केवल विचारों से विचारों को बदलना चाहते हैं। उसके पास कोई ठोस प्रक्रिया नहीं है, जिससे व्यक्ति की सोच मे परिवर्तन लाया जा सके।
मनोवैज्ञानिक विधियों की अपनी सीमाएं हैं।
लेकिन अध्यात्म तो वहां से आरंभ होता है, जहां विज्ञान की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। अध्यात्म द्वारा ही अंत:करण तक पहुंचा जा सकता है और नकारात्मकता को पराजित किया जा सकता है। अध्यात्म ज्ञान के द्वारा हमारे भीतर चल रहे प्रत्येक विकार का विचार भावना साफ साफ देख पाते हैं। और फिर ध्यान-साधना द्वारा शुरू होती है, प्रक्रिया सुधार की, परिवर्तन की, परिमार्जन की!
जब एक साधक ब्रह्मज्ञान आधारित ध्यान-साधना करता है, तो सारी ऊर्जा लोअर पोल, जो कि नेगेटिव है, से ऊपरी पोल, जो कि पॉजीटिव है, की तरफ प्रवाहित होने लगती है। इस कारण
नकारात्मकता सकारात्मकता में बदलती जाती है। हर नेगेटिव विचार पॉजीटिव की दिशा पकड़ लेता है।
इस तकनीक को पाने के लिए सदगुरु की शरणागत होना आवश्यक है। उनसे ब्रह्मज्ञान की अनमोल दीक्षा लेना आवश्यक है। यही एकमात्र रास्ता है। अन्य
दूसरा कोई मार्ग नहीं।
**ओम् श्रीआशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
