**स्वहित और सर्वहित के लिए साधना बहुत जरूरी है।**

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

मुकुन्द अक्सर स्कूल से आकर ध्यान में बैठ जाता था। कई बार तो स्कूल के बीच में भी एकांत स्थान पर साधना करने के लिए चला जाता। जहां और बच्चे खेल-कूद के मौके ढूंढ़ते, वहीं मुकुंद ईश्वर -चिंतन और ध्यान साधना के लिए उत्सुक रहता। मुकुंद की इन बातों से खींझ कर, एक दिन उसके बड़े भाई अन्नता दा ने कडी़ आवाज में कहा- मुकुंद, यह ध्यान-त्यान क्या लगा रखा है? मैं बता रहा हूं, इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है। अब भी समझ लो, इस तरह तुम्हारा जीवन बस एक सूखे पत्ते की तरह बनकर रह जाएगा जिसकी कोई कीमत नहीं होती। जो बस इधर से उधर भटकता रहता है। जैसे ही यह सुना मुकुंद बोला भैया वैसे सूखे पत्ते ही बढ़िया खाद बनाते हैं, जो पेड़- पौधों को पोषण देती है।आगे चलकर यही मुकुंद योगानंद परमहंस बने, जिन्होंने पूरे विश्व को आध्यात्मिक पोषण प्रदान किया। वे कहते हैं कि साधना में लगाया गया समय व्यक्ति की कीमत को गिराता नहीं, बल्कि उसे सबसे मूल्यवान बना देता है। क्योंकि  साधना व्यक्तिगत निर्माण तो करती ही है, समस्त मानव जाति के कल्याण हेतु भी पोषण प्रदान करती है। इसलिए स्वहित और सर्वहित के लिये साधना बहुत जरूरी है। 

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

Post a Comment

Previous Post Next Post