काम को आशा,चाह, इच्छा ,अभिलाषा,लालसा, तमन्ना आदि कहते हैं।यह जड़, नश्वर , रजोगुणी तथासांसारिक भोगों से कभी तृप्त/शांत होने वाला नहीं है। काम पर्दा/अज्ञान है।यह तमस/अंधकार स्वरुप है। यह वस्तु के असल स्वरुप को आवृत कर देता है,ढक देता है। जैसे धूलि के कण दर्पण के असल स्वरुप पारदर्शिता को ढक लेते हैं। काम अज्ञान से वस्तु का असल स्वरुप नष्ट नहीं होता,न बदलता है बल्कि छिप जाता है। जैसे बादल से सूर्यं नष्ट नहीं होता,बदलता नही अपितु कुछ समय के लिए छिप जाता है। वस्तु का असल स्वरुप दिखना ज्ञान है और न दिखना
अज्ञान ,पर्दा,अंधकार है।
जिस ज्ञान से अज्ञान/तमस/पर्दा हटता है उसी ज्ञानसे वस्तु का असल स्वरुप दिखताहै।
जैसे ही कमरे का पर्दा
हटाया वैसे ही वहां रखी सारी वस्तुएं अपने असल
स्वरुप में प्रकट हो जाती हैं।पंच विषयों के चिंतन से
आसक्ति उत्पन्न होती है और आसक्ति से काम,
काम पूरा होने पर लोभ,
मोह आदि उत्पन्न होते हैं।
काम पूरा न होने पर क्रोध
उत्पन्न होता है।क्रोधसेमूढ
भाव,मूढभावसेस्मृतिनाश,
स्मृति नाश से बुद्धि नाश तथा बुद्धि नाश से मनुष्य का पतन हो जाता है --श्रीगीता२.६२-६३
डॉ.हनुमान प्रसाद चौबे
गोरखपुर
