सोचता हूं

 

जल में नाविक पतवार से नाव को चला रहा है कि 

अकस्मात् हवा काएक

झोंका आकर उसनाव को

डुबो देता है, इसी तरह शब्द,रुप,रस, गंध तथा स्पर्श पंचतन्मात्राओंअथवा

पंच विषयों में विचरती हुई 

पंच ज्ञान इन्द्रियों(कान,

आंख ,जीभ,नाकतथा चर्म)मेंसे मन जिस ज्ञान 

इन्द्रिय के साथ रहता है,

रस लेता है वह एकहीज्ञान

इंद्रिय व्यक्ति की बुद्धि (मति,ज्ञान, सद्विचार)को

हर लेती है, मोहित कर लेती है,मूढतथापथभ्रष्टकर

देती है और व्यक्ति का

पतन/नाश हो जाता है। --

इन्द्रियाणां हिचरतां

यन्मनोsनुविधीयते।

तदस्यहरतिप्रज्ञां

वायुर्नावमिवांंभसि।।--

गीता २.६७

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