सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
जो व्यक्ति किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर ध्यान साधना नहीं कर रहा है, वह जाने-अनजाने आत्मघात कर रहा है। क्योंकि जो ध्यान साधना नहीं कर रहा है, वह आत्मा को न पा सकेगा। जो ध्यान साधना नहीं कर रहा है, वह मरणधर्मा में उलझा रहता है। और मरणधर्मा में जीवन का सार नहीं है। वह क्षुद्र में ही लगा रहता है। और क्षुद्र में कोई आनंद नहीं है, कोई मुक्ति नहीं है। यह आत्मघात है।
आप जिसे जीवन कहते हो, यह आत्मघात है, रोज-रोज मरते जाते हो। एक-एक दिन बीतता और जीवन कम होता जाता है। जितने दिन बीत गए, उतने अवसर बीत गए। उतने दिन बीत गए, जिनमें आप स्वयं को उपलब्ध हो सकते थे, जिनमें परमात्मा का साक्षात हो सकता था, उतने अवसर बीत गए।
मगर मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जो बीत गए दिन, उनके लिए बैठकर रोओ। अब जो बीत गए, सो बीत गए। अब रोने में इसको भी मत गंवा देना।
और सुबह का भूला सांझ भी घर आ जाए, तो भूला नहीं है; भूला नहीं कहाता है। अगर एक पल भी बाकी है आपके जीवन का.. और निश्चित ही अभी जीवित हैं, तो यह पल तो है ही। आने वाले पल की कोई बात नहीं, यह पल तो आपके हाथ में है। इस पल भी अगर आप पूरी तरह से अपने को देख लें तो रूपांतरण का पल हो सकता है।
एक क्षण में संसार मिट सकता है और परमात्मा सामने हो सकता है। गहन तीव्रता चाहिए, उत्तप्तता चाहिए, सब दाव पर लगाने की क्षमता चाहिए।
मानव जीवन एक अवसर है अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का। और हमारा लक्ष्य है ईश्वर को जानना और जानकर उनको पाने के रास्ते पर चलना। अगर हम ऐसा करते हैं तो ठीक है, नहीं तो फिर से 84 लाख के निम्न योनियों में जाने के लिए मजबूर होते हैं।
अतः हमें किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए जिससे हमारा मानव जीवन सार्थक हो जाए।
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
