सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
जिज्ञासा मनुष्य के स्वभाव का सहज अंग है। परंतु दुर्भाग्यवश, बहुत ही कम ऐसे लोग होते हैं जिनकी जिज्ञासा जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने के लिए होती है। गुरुदेव श्रीआशुतोष महाराज जी कहते हैं "न्यूटन ने पेड़ की शाखा से गिरते हुए सेब को देखकर गुरुत्वाकर्षण के नियम की। किंतु यदि वह उस बल पर बिचार करता, जिसके द्वारा वह सेब पेड़ की शाखा से जुड़ा हुआ था, तो हो सकता है कि वह जीवन के श्रेष्ठतम नियम (ईश्वरीय नियम) की खोज कर लेता।" मृत्यु निश्चित है और जीवन अनिश्चित है। परंतु तब भी मनुष्य अपना अमूल्य समय ऐसी वस्तुओं को सहेजने में व्यर्थ कर रहा है, जो मृत्योपरांत वह अपने साथ लेकर नहीं जाएगा। यक्ष महाराज युधिष्ठिर से प्रश्न करते हैं "इस जीवन में अनुसरण करने योग्य कौन सा मार्ग है?" युधिष्ठिरजी जवाब देते हैं_ "महाजनो येन गत: स पंथा" अर्थात, संतों महापुरुषों के पद चिन्हों का अनुसरण करना ही सबसे उत्तम मार्ग है।
जिस प्रकार एक नाविक महासागर पार करते समय अपने साथ दिशा निरूपण यंत्र (कम्पास) रखता है, उसी प्रकार हमारे संतों महापुरुषों द्वारा प्रदर्शित मार्ग हमारी इस जीवन रूपी यात्रा के लिए वास्तविक दिशा निरूपण यंत्र है। यक्ष महाराज फिर प्रश्न करते हैं_ "कौन सी विद्या सभी विद्या का राजा है?" युधिष्ठिर जी बताते हैं_ "उस परम सत्ता ईश्वर का ज्ञान ही राजविद्या है।" इसी राजविद्या- ब्रह्मज्ञान के मेघ बरसाने हेतु पूर्ण गुरु धरती पर अवतरित होते हैं। इस विद्या से हम मानव शरीर में ही ईश्वर का दर्शन कर सकते हैं।
परंतु हमारा दुर्भाग्य कि हम सोचते हैं कि हम मृत्यु का ग्रास नहीं बनेंगे। तभी तो जीवन में ज्ञान प्राप्ति के लिए विलंब करते हैं।
हमें सच्ची निष्कपट प्रार्थना करनी चाहिए कि हे भगवान, मुझे आप और केवल आप ही चाहिए। मुझे किसी ऐसे सदगुरु की शरणागत करें जो मुझे ब्रह्मज्ञान देकर आपसे मिलने का मार्ग प्रदान कर सकें।
**ओम् श्रीआशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
