**मानव जीवन तभी सार्थक है, जब हम किसी पूर्ण गुरु के सान्निध्य में जाकर ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर ईश्वर का दर्शन अपने घट के भीतर कर लें।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

श्रीमद्भागवत पुराण में कहा गया है__भगवान श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम गोपियों को ब्रह्मज्ञान दिया। और तत्पश्चात महारास द्वारा भीतर में परम आनंद का बोध करवाया।

जब जब भी धरा पर आसुरी प्रवृतियाँ हाहाकार मचाती है, तब तब प्रभु अवतार धारण करते हैं। इसी प्रकार वह ईश्वर हर युग, हर काल में साकार रूप धारण कर व्यक्ति के भीतर ईश्वर को प्रकट कर देता है। भीतर की आसुरी प्रवृतियों का नाश कर परम सुख और आनंद का बोध कराता है और तब अधर्म पर धर्म की विजय का शंखनाद गुंजायमान हो उठता है।

मानवता को धर्म का पर्याय कहा गया है। मानवता कहती है कि अपने कर्तव्य का सुंदरता से पालन करें। मानव तन एक अवसर है, प्रभु को प्राप्त करने का। मानव जीवन तभी सार्थक है, जब हम किसी पूर्ण गुरु के सान्निध्य में जाकर ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर उस परम पिता परमेश्वर का दर्शन अपने घट के भीतर कर लें। हर युग में पूर्ण गुरुओं ने जिज्ञासुओं को इसी ज्ञान में दीक्षित किया है। इस प्रक्रिया में वे शिष्य की दिव्य दृष्टि खोलकर उसे अंतर्मुखी बना देते हैं। शिष्य अपने अंतर्जगत में ही अलौकिक प्रकाश का दर्शन और अनेक दिव्य अनुभूतियाँ प्राप्त करता है। वर्तमान मे "दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान" भी गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा से समाज को इसी ब्रह्मज्ञान में दीक्षित कर रहा है। नितांत नि:शुल्क रूप से।

  **ओम् श्रीआशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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