सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
अंतर्यामी निराकार प्रभु देह धारण कर जब साकार रूप में जीवन में आते हैं और अपनी लीलाओं रूपी चंद्र प्रभा भक्तों पर बरसाते हैं, तब भक्त चकोर बने बिना रह नहीं पाते। पर युगों का इतिहास बताता है कि यही सरस और शीतल प्रभु कभी-कभी कठोर भी हो जाते हैं। क्यों? क्योंकि स्वर्ण को कुंदन जो बनाना है, इसलिए तपाना तो पड़ेगा ही। प्रभु जानते हैं कि भक्त के लिए कठिन होगा, पर फिर भी उसकी परीक्षा लेते हैं। प्रश्न पत्र उसके हाथ मे थमाकर, स्वयं परीक्षा भवन से बाहर चले जाते हैं। भक्त यह जानता है कि प्रभुकृपा देह से आबद्ध नहीं, पर फिर भी साकार अवतार की छवि ओझल होते ही वह विचलित हो उठता है। उसके जीवन में पतझड़ आ जाती है और यह पतझड़ कितनी लम्बी चलेगी, प्रभु के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं जानता। तभी तो विह्वलता के कारण भक्तों के दिल से आवाज आने लगती है__
"इन नैन बरसते में कब आएगा बतला दे,
बिन प्राणों के ये काया कैसे रहे समझा दे।
आ भक्तों का टूटा हुआ विश्वास जगाना है।।
सब ढूँढ़ते हैं तुझको तुम आता नजर ही नहीं,
अपने भक्तों की कभी तूं लेता खबर ही नहीं।
इक बार तो सुन गुरुवर हाले दिल का सुनाना है।।"
"आशु बाबा बतला तेरा कहाँ ठिकाना है।
किस राह पे चलना है किस राह पे जाना है।।"
**ओम् श्रीआशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"