सोचता हूं।

 

श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने

अपने प्रिय सखा अर्जुन से कहा–अर्जुन!

जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं,मैं भी

उन भक्तों को उसी तरह भजता हूं, क्योंकि सभी मनुष्य सब तरह से मेरे ही

मार्ग का अनुसरण करते हैं। इस संसार में 

कर्मों केफलको चाहने वाले लोग इन्द्र,

अग्नि,बरुण,काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि देव-देवियों की पूजा किया करते हैं,

क्योंकि उनकों कर्मोंसे मिलने वाली सिद्धि

जल्दी मिल जाती है।–

येयथामांप्रपद्यंतेतांस्तथैवभजाम्यहम्।

ममवर्त्मानुवर्तन्तेमनुष्या:पार्थसर्वश:।।

कांक्षत:कर्मणांसिद्धिंयजंत इह देवता:।

क्षिप्रं हिमानुषेलोकेसिद्धिर्भवतिकर्मजा।।

अध्याय४ श्लोक११-१२.

                 प्रस्तुतकर्ता 

           डां.हनुमानप्रसादचौबे

                  गोरखपुर।

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