सोचता हूं ।

 


इस लोक में जिस किसी ने जिस किसी 

प्रयास से बुद्धि,यश,सद्गति, विभूति/ऐश्वर्य

औरकल्याणपायाहै,सोसब सत्संग का ही

प्रभाव समझना चाहिए। वेदों में और लोक में इनकी प्राप्तिकाअन्य कोई साधन

नहींहै।सत्संग/सज्जनसंगसेहीअच्छा-बुरा भेदक शक्ति अर्थात् विवेकज्ञान मिलता है, लेकिन सत्संग का मिलना कठिन होता है, क्योंकि भगवान् की अनुकम्पा से ही 

सत्संग मिलता है।सत्संग आनंद और कल्याण का मूल है। सत्संग की प्राप्ति ही

फलहैऔर सब साधन तो फूल है। दुष्ट भी 

सत्संग पाकरसु़धरजाते हैं। जैसे पारस पाषाण के संग से कुधातु लौह सुधातु सोना बन जाता है। सज्जन तो दुष्टों के संग में रह कर भी दूसरों को प्रकाश ही देते हैं, दुष्टों काउनपर कोई प्रभावनहीं

पड़ता।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश,कविऔरपंडितों कीवाणीभी संतकी महिमा का वर्णन करने में संकोच करती है,तो भला प्राकृत 

व्यक्ति क्या कर सकता है?

बिधिहरिहरकबिकोबिदबानी।

कहतसाधुमहिमासकुचानी।।–

बालकांड, रामचरितमानस 

           प्रस्तुतकर्ता 

    डां.हनुमानप्रसादचौबे

             गोरखपुर।

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