सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
हम सबका एक दूसरे के प्रति सुंदर मनोभावना होनी चाहिए। और सुंदर मनोभावना के लिए मन शुद्ध होना चाहिए। मन शुद्ध रखने के लिए अंतरआत्मा से जुड़े रहना चाहिए। मन अगर आत्मा से जुड़ा रहता है तो विवेक जागृत रहता है। विवेकवान व्यक्ति ही संसार में सफल रहता है। हर मनुष्य के भीतर कमोबेश पांच विकार रहते हैं-- काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। इनमें अहंकार सबसे ज्यादा हानिकारक एवं खतरनाक होता है। अहंकार केवल धन दौलत या मान मर्यादा का ही नहीं होता है।अहंकार विचारों का भी होता है। अगर हमारे विचार अच्छे हैं, एक दूसरे के प्रति 'सर्वे भवंतु सुखिनः' की भावना रखते हैं तो मन पवित्र रहता है।
और अंत में हम यही कहेंगे-- मन पवित्र रखो, मन पवित्र रखो! क्योंकि पवित्रता ही मनुष्यता की पहचान है। जो मन, वचन, कर्म से पवित्र है, वो चरित्रवान ही महान है, वो चरित्रवान ही महान है।बस!!
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
