*सदा समभाव को जीवन में स्थान दे!*

          सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा वर्षा


प्रकृति या भाग्य ही ऐसी परिस्थितियां निर्मित करें कि  आपको सम्मान यश की प्राप्ति हो। तो ऐसे में भी संभलना या संतुलित रहना अति आवश्यक है। करण की प्रकृति द्वैतवाद के नियम पर चलती है। यहां सबकुछ सुख-दुख ,दिन -रात, अच्छा -बुरा, के चक्र में घूमता रहता है। इसलिए आज प्रकृति आप पर दोनों हाथों से लूटा रही है। आपको देती चली जा रही है। सम्मान में ऊंचे -ऊंचे सिंहासन सजाती जा रही है। यह प्रभु की आप पर असीम कृपा है। समय का सदुपयोग कर, जगत कल्याण के लिए ज्यादा से ज्यादा परमार्थ करें। क्योंकि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। पर कल द्वैत के अनुसार यही प्रकृति अपना अगला दाव खेलेगी। तब मान- प्रशंसा की  इमारतें चुटकियों में धूल में मिल जाएगी। प्राकृतिक आपको अर्श से फर्श पर  पटकनी देगी। 

  एसे मे यदि हम प्रशंसा -सराहना मिलते समय सतर्क नहीं रहते , हमें ऊंचे सिहासनों पर बैठने का आदत पड़ जाती है, तो ठोकर से ऐसी ठेस पहुंचती है  कि हम अवसाद के दलदल में फंस जाते हैं। घोर मानसिक पीड़ा से गुजरते हैं। इसलिए गीता का उपदेश युग- सत्य है। सदा समभाव को  जीवन में स्थान देना चाहिए। समय के पूर्ण गुरु से ब्रह्मज्ञान कि  दीक्षा लेकर निरंतर ध्यान साधना करना चाहिए। 

*मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो:।*

*सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीत: स उच्यते।।*

                   गीता (14/25)             - जो व्यक्ति मान - अपमान में सम रहता है; मित्र -शत्रु के पक्ष में भी समान भाव रखता है ;जो कर्ता भाव से मुक्त होकर कर्म करता है- ऐसे पुरुष को गुणातीत कहा जाता है। 

ॐ श्री आशुतोषाय नम:

 श्री सियाबिहारी चौधरी ✍️

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