सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा वर्षा
एसे मे यदि हम प्रशंसा -सराहना मिलते समय सतर्क नहीं रहते , हमें ऊंचे सिहासनों पर बैठने का आदत पड़ जाती है, तो ठोकर से ऐसी ठेस पहुंचती है कि हम अवसाद के दलदल में फंस जाते हैं। घोर मानसिक पीड़ा से गुजरते हैं। इसलिए गीता का उपदेश युग- सत्य है। सदा समभाव को जीवन में स्थान देना चाहिए। समय के पूर्ण गुरु से ब्रह्मज्ञान कि दीक्षा लेकर निरंतर ध्यान साधना करना चाहिए।
*मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो:।*
*सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीत: स उच्यते।।*
गीता (14/25) - जो व्यक्ति मान - अपमान में सम रहता है; मित्र -शत्रु के पक्ष में भी समान भाव रखता है ;जो कर्ता भाव से मुक्त होकर कर्म करता है- ऐसे पुरुष को गुणातीत कहा जाता है।
ॐ श्री आशुतोषाय नम:
श्री सियाबिहारी चौधरी ✍️
