सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
आखिर क्यों हमारे मस्तिष्क में ज्यादातर नकारात्मक और निराशाजनक विचारों का बोल बाला रहता है? क्यों हमारे विचारों की प्रवृत्ति पानी के समान नीचे की ओर ही होती है? सभी मनुष्यों का मानसिक रूझान कुछ इस प्रकार का ही पाया गया है। हमारी इस वृत्ति को मनोवैज्ञानिकों ने Negativity Bias का नाम दिया है। इसके अनुसार मनुष्य का दिमाग सकारात्मक व आशावादी सोच की तुलना में नकारात्मकता की ओर अधिक प्रेरित रहता है।नकारात्मकता की ओर झुकाव के कारण अधिकतर लोग कठोर व विपरीत परिस्थितियों के समक्ष घुटने टेक देते हैं।
लेकिन महापुरुष बताते हैं कि मात्र अध्यात्म ही इन मानसिक नकारात्मकताओं से उबरने का अचूक व कारगर सूत्र प्रदान कर सकता है। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी एक उदाहरण के द्वारा समझाते हैं---
यदि पानी से भरे गिलास को थोड़ा टेढ़ा किया जाए, तो जलधारा नीचे की ओर बहनी आरंभ हो जाएगी।पर यदि उसी पानी से भरे पात्र को सूर्य के संपर्क में रख दिया जाए, तो जल का स्वभाव पूर्णतः परिवर्तित हो जाएगा। माने कि अब पानी नीचे की ओर नहीं अपितु भाप बनकर ऊपर की ओर जाएगा।
ठीक यही विज्ञान हमारे मन व मानसिक विचारों के संदर्भ में भी लागू होता है।हमारा मन भी नकारात्मकता की ओर सीघ्र आकर्षित होता है।पर यदि इस मन का संपर्क हमारे भीतर आकाश तत्व में स्थित सूक्ष्म प्रकाश से कर दिया जाए, तो इसकी दिशा और दशा दोनों परिवर्तित हो जाएंगी। हमारे विचारों की प्रवृत्ति ही पलट जाएगी। विकट स्थितियों में भी हमारा मन सकारात्मकता व "चरैवेति चरैवेति" की ही धुन गुनगुनाएगा।
सच में सौभाग्यशाली होते हैं वे लोग, जिन्हें अपनी मानसिक विकृति को विजित करने का अचूक आध्यात्मिक सूत्र मिल जाता है।
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
