**जिस मार्ग का चयन पूर्ण गुरु या महापुरुष करते हैं- वही पंथ है, सही कर्म है, धर्म है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

हर मनुष्य के जीवन में कभी न कभी ऐसी परिस्थिति आती है, जब वह दुविधा में होता है- यह कार्य करूँ या न करूँ? इस स्थिति का वर्णन श्री कृष्ण द्वारा गीता में भी किया गया-- "कार्याकार्यव्यवस्थितौ"- कर्तव्य और अकर्तव्य के बीच क्या निर्णय करें? हम यदि इस दुविधापूर्ण स्थिति की चर्चा मैनेजमेंट से जोड़कर करें, तो कई दिग्गजों ने समाधान देने का प्रयास किया है।

   परन्तु यह सिद्धांत हर परिस्थिति में लागू नहीं किया जा सकता। हम देखते हैं कि मैनेजमेंट के सूत्र और ग्रंथों में दिए गए वचन हमारे मार्ग दर्शन के लिए बने हैं। परंतु जब हम अपनी कोरी बुद्धि से समझने की कोशिश करते हैं, तो फिर स्थिति सुलझने की जगह उलझ जाती है।

   केवल तर्क के आधार पर सत्य या सही बात को प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता। हर परिस्थिति के लिए श्रुतियों के मत भी अलग अलग हैं। अनेक ऋषि हैं और उनके अनेक वचन व सिद्धांत हैं। कोई एक वचन सार्वभौम नहीं है।धर्म का तत्व बहुत गूढ़ और गोपनीय है। उसे समझना इतना आसान नहीं है।

   अतः धर्म के तत्व को अगर समझना है, तो  एक ही मार्ग है-- "महाजनो ये गत: स: पंथा:"। अर्थात जिस मार्ग का चयन पूर्ण गुरु या महापुरुष करते हैं- वही पंथ है, सही कर्म है, धर्म है।

  अतः वर्तमान समाज जिसे सदगुरु के नाम से परहेज है, उसे समझना होगा-- यदि कर्म सम्बन्धी दुविधाओं से बाहर निकलना है, तो एक ऐसे ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की जरुरत है-- जो हर घड़ी, हर परिस्थिति के अनुसार हमें अपना सतत मार्ग दर्शन देते हों। स्थिति, समय या व्यक्ति के अनुसार क्या निर्णय लेना चाहिए, क्या कर्तव्य है, क्या अकर्तव्य है, क्या धर्म है, क्या अधर्म है- इसका चयन केवल वही विभूति कर सकती है, जो दिक् और काल के बंधनों से उपर हो। जो मन पर नहीं, आत्मा पर तिष्ठ हो।ब्रह्मस्वरूप हो! जो स्थूल रूप से या आत्मा की आवाज बनकर हमारा सतत मार्ग दर्शन करती हो।ऐसी सत्ता को ही पूर्ण गुरु कहते हैं।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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