सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
एक गांव में एक व्यक्ति रहता था। उस व्यक्ति के पास एक मुर्गा था, जो हर सुबह सूर्य उदय होने पर बाँग देता था। पर वह व्यक्ति थोड़ा नासमझ था। एक दिन गांव के कुछ लोगों के साथ उसकी बहस हो गई।वह व्यक्ति आक्रोश में आ गया और बोला- ठीक है, अब मैं बताता हूँ कि मुझसे उलझने का क्या मतलब है।तुम गाँव वालों को पता नहीं है कि जब मेरा मुर्गा बाँग देता है, तभी सूर्य उगता है।मैं आज शाम को ही अपने मुर्गे को लेकर गाँव से चला जाऊँगा। कल जब सूरज नहीं आएगा तो तुम सब रोते रोते मुझे ढूंढते हुए आओगे। यह कहकर वह गाँव से चला गया।
आप सबको क्या लगता है? क्या अगले दिन गाँव में सूर्य उदय नहीं हुआ होगा?
हम सब जानते हैं कि वास्तविकता तो विपरीत है।मुर्गे की बाँग सुनकर सूर्य उदय नहीं होता। बल्कि सूरज के उगने पर मुर्गा बाँग देता है।
ऐसे ही, जब बात आती है कि इस सृष्टि को, हम मनुष्यों को बनाने वाला ईश्वर है। तब हममें से कुछ बुद्धिमान लोग तर्क देते हैं- ईश्वर ने हमें नहीं बनाया।बल्कि हम मानवों ने ईश्वर को बनाया है। वह हमारी कल्पना से उत्पन्न हुआ है।यदि हम ईश्वर को मानना छोड़ दें तो उसका कोई अस्तित्व नहीं रहेगा।
पर सच्चाई तो यह है कि हम माने या न माने, ईश्वर है और हमेशा रहेगा। हमारा अस्तित्व समय के साथ नष्ट हो जाएगा, पर वह अविनाशी सत्ता है। हम हों या न हों, उसका प्रकाश सदा रहेगा। और यह सब तभी समझ मे आता है, जब हम किसी ब्रह्मनिष्ठ गुरु के सानिध्य में जाते हैं।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
