सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
'अचेत' अर्थात जिनकी चेतना सोई हुई है यानि आत्मिक स्तर पर बेसुध है और 'दुराध्य' मतलब दुराचारी या दुष्टजन। आज के समय में ऐसे दुर्बुद्धियों को ढूंढना मुश्किल नहीं है।ऐसे ही दुष्टों के द्वारा हमारी धरती माँ का शोषण और दोहन कई मायनों और स्तरों पर हो रहा है। फिर चाहे वह सियासी माहौल हो या संस्थाओं की पक्षपाती नीतियां! राष्ट्रीय या प्रादेशिक स्वार्थ पोषित गुटवाजियाँ हो या फिर व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ण जीवन हो। हर क्षेत्र में ऐसे अचेत और दुर्बुद्धि लोग नजर आ जाते हैं। विश्व के हर छोर से उठता 'त्राहिमाम' इसी शोषण का फल है।
इस विलाप से एक विवेक द्रष्टा का चित्त विह्वल हो उठता है। तब इस जगत में उसका अवतरण होता है।वह मनीषी जन-समाज के स्तर पर उतर कर ब्रह्मज्ञान की शक्ति और प्रकाश का वितरण करता है। पृथ्वी पर आध्यात्मिक क्रांति का बिगुल बजाता है। ऐसा क्रान्तदर्शी सदगुरु अपने तप के द्वारा आसुरी वृत्तियाँ को दैवीय स्वरूप में परिवर्तित कर देता है। मानव में व्याप्त दैवीय गुण विकसित होते जाते हैं और आसुरी वृत्तियाँ विलुप्त होती जाती हैं। आत्मिक जागृति के इस आंदोलन से पूरी धरा अभिभूत हो उठती है। पृथ्वी पुन:आसुरी शक्तियों से संरक्षित और दैवीय संपदा से अलंकृत हो जाती हैं।
पाठकों! ये दोनों तत्व- 'सुर' और 'असुर' पृथ्वी पर सदा से विद्यमान रहे हैं और इनके बीच का युद्ध कहलाता है- 'देव असुर संग्राम'। पर महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि देवपुरुष कब विजयी होते हैं? युग युगीन सूत्र एक ही रहा है। यह कि दैविक शक्तियां जीतती हैं, जब आत्म प्रकाश का 'चिंतन' अर्थात ध्यान किया जाता है। तब ही पृथ्वी का रक्षण हो पाता है और पाश्विक वृत्तियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
