संकटों से मुक्ति पाने को राजा हरिशचंद्र ने रखा था यह व्रत

भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी को अजा एकादशी या कामिका एकादशी भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से पूर्वजन्म की बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस व्रत को रखने वाले मनुष्य को अपनी इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना चाहिए।
यह व्रत मन को निर्मल, हृदय को शुद्ध करता है। मनुष्य को सद्मार्ग की ओर प्रेरित करता है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने से वैकुंठ की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस एकादशी के व्रत और कथा के श्रवणमात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
इस एकादशी की कथा राजा हरिशचंद्र से जुड़ी हुई है। राजा हरिशचंद्र वीर प्रतापी और सत्यवादी राजा थे। उन्होंने अपने वचन को पूरा करने के लिए अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया और स्वयं एक चांडाल के यहां सेवक बन गए। इस संकट से मुक्ति दिलाने का उपाय ऋषि गौतम उन्हें सुझाते हैं। महर्षि ने राजा को अजा एकादशी व्रत के विषय में बताया। राजा ने विधिपूर्वक इस व्रत को किया और इस व्रत के प्रभाव से उनको पुन: उनका राज्य मिला। इस व्रत के प्रभाव से जाने अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत में कभी भी मांगकर भोजन नहीं करना चाहिए। किसी वृक्ष को नहीं काटना चाहिए। दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए। 

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