सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                             *अखण्ड ज्ञान*

             श्री आर सी सिंह जी रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसर

संसार को जानने - समझने के लिए बुद्धि की जरूरत होती है। स्कूल-कालेज में जाकर हमारी केवल बुद्धि विकसित होती है। जबकि परमात्मा को जानने-समझने और पाने के लिए विवेक शक्ति चाहिए। जो केवल ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर सत्संग करने से ही जागृत होती है। और सत्संग केवल और केवल मनुष्य योनि में ही हो सकता है। अन्य किसी भी योनि में नहीं।

    सभी मनुष्यों के जीवन में समस्याएं, यानी उलझने कम अधिक सदा ही बनी रहती है। इनमें बहुत अधिक उलझ कर अपने वर्तमान समय को बर्बाद करने की बजाय अपने नए कर्मों की गुणवत्ता को संवारना चाहिए। ताकि भविष्य में इन समस्याओं की पुनरावृत्ति न हो और हमारा भविष्य सुंदर बन सके।

    भौतिक जगत यानी संसार के चक्रव्यूह में घुस जाना तो आसान है। पर इस संसार से निकल पाना बहुत ही कठिन है, लेकिन फिर भी असंभव नहीं है। अर्थात ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहने से श्रद्धा मजबूत होने लगती है। और स्थायी ज्ञान हो जाने से संसार से वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। फिर परमात्मा से प्रीति होकर असंभव बात भी एक दिन संभव हो जाती है।

    मनुष्य ही सत्संग करने का अधिकारी है। किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर सत्संग करते रहने से ही हमारे अंत:करण में शुभ संस्कार बनने लगते हैं। और बने हुए अशुभ संस्कार धीरे धीरे मिटने लगते हैं, जिससे हमारे नये होने वाले कर्मों की सकामता में कमजोरी आने लगती है। और कर्मों की निष्कामता आ जाने से भक्ति का बीज अंकुरित होता है, जिससे हमारी आध्यात्मिक यात्रा गति पकड़ लेती है।

*ओम् श्री आशुतोषाय नमः*

RC Singh. 7897659218.

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