*अखण्ड ज्ञान*
श्री आर सी सिंह जी रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसरमनुष्य एक सामाजिक जीव है। उसको अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य मनुष्यों का सहयोग लेना ही होता है। फिर भी हम सभी मनुष्य आपस में जब जब प्रभु की चर्चा करते हैं, बस वही समय स्वर्ग है और जब जब हम विषय भोगों की चर्चा करते हैं, बस उसे ही नरक मानिये। हम सभी मनुष्यों को अपना अपना आकलन स्वयं ही करना चाहिए कि हमारी दिनचर्या कैसी रहती है?
84 लाख योनियों में केवल मनुष्य योनि में ही परमात्मा को पाया जा सकता है। अर्थात परमात्मा ने मनुष्य योनि हमें केवल आध्यात्मिक यात्रा के लिए ही दी है। मरते समय तक हम जितनी यात्रा कर लेते हैं, अगले मनुष्य योनि में आध्यात्मिक यात्रा उस बिंदु विशेष से आगे की ही करनी होती है। अर्थात पुरानी की गई आध्यात्मिक यात्रा बेकार नहीं जाती। लेकिन भौतिक उन्नति मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है।
मनुष्य स्वभाव से तो रजोगुणी है यानी प्रकृति के रजोगुण से अधिक बंधा हुआ है। लेकिन मनुष्य में ही सतोगुण में वृद्धि की जा सकती है। जिसका सरल उपाय ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर सत्संग करना है। यह सत्संग सफेद रंग की तरह धीरे-धीरे ही अपना असर दिखाता है। जबकि कुसंग काले रंग की तरह अपना असर तुरंत दिखाता है। इसलिए अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के लिए आरंभ से ही कुसंग से बचना चाहिए।
84 लाख योनियों में केवल मनुष्य योनि ही कर्म प्रधान है। मनुष्य से नीचे की सभी योनियों के सभी जीवों की यात्रा इंसान बनने की ओर हर पल प्रकृति के अनुसार हो रही है। लेकिन इंसान अज्ञानता वश सत्संग के अभाव में केवल भोगों के लिए ही पाप कर्म करता हुआ दोबारा से इन निकृष्ट योनियों में लौटने का अपना दुर्भाग्य बना रहा है। इस पर हम सबको चिंतन मनन करना चाहिए।
*ओम् श्री आशुतोषाय नमः*
RC Singh.7897659218.
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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