सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीकबीर जी एक अलमस्त संत हुए हैं! एक बार उनका शिष्य दौड़ता हुआ उनके पास आया! बहुत डरा सहमा सा था वह!उखड़ी सांस में ही बोला गुरुदेव- जानते हैं कुछ ही पलों में सूर्य ग्रहण लगने वाला है! कबीर जी खिल खिलाकर हंस दिए! शिष्य हैरान! कबीर जी ने कहा फिर तू क्यों घबरा रहा है?पूर्ण गुरु के शिष्य को ना तो सूर्य ग्रहण से डरने की जरूरत है, ना चंद्र ग्रहण से! हां, यदि उसे किसी का डर होना चाहिए तो वह केवल और केवल एक ग्रहण है! वो है हृदय ग्रहण! यह ग्रहण केवल शिष्यों के जीवन में ही लगा रहना है! जब गुरु और शिष्य के बीच अहंकार का पर्दा आ जाता है, अहंकार की दीवार आ जाती है, तब लगता है यह ग्रहण! तभी तो एक सच्चा शिष्य अहंकार को कभी अपने पास तक नहीं फटकने देता! एक बहुत सुंदर दृष्टांत है नरेन्द्र के जीवन का! एक बार उनके दोस्त राखाल ने उनसे पूछा- नरेंद्र, आजकल तो तुम पूरा दिन सेवा में लगे रहते हो और पूरी रात साधना में बैठे दिखते हो! मुझे लगता है कि अब तो तुम्हारे अंदर कोई विकार बाकी नहीं रहा होगा! नरेंद्र नटखट स्वभाव के थे! उन्होंने कहा अरे राखाल, तुझे नहीं पता मेरे अंदर तो एक बहुत बड़ा विकार है! उसने तुरंत पूछा कौन सा विकार है!नरेंद्र ने कहा, ना ऐसे ही थोडे ना बता दूंगा! तब नरेंद्र ने राखाल से कहा पहले मेरा यह कार्य कर, तब बताऊंगा मेरा वह कार्य भी कर तब बताऊंगा! इस तरह नरेंद्र ने राखाल से अपने बड़े सारे कार्य करवाए!आखिरकार जब ऐसा करते-करते शाम हो गई तो वह बोला जा नहीं बताना तो न बता! मैं सीधा ठाकुर से ही पूछ लेता हूं! वे तो सबके मन की सब जानते हैं! तब नरेंद्र ने कहा किसी को बताना मत! मेरे अंदर ईर्ष्या का विकार है! मुझे ईर्ष्या है! राखाल को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ...अरे! मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता! तू,नरेंद्र, कभी किसी से ईर्ष्या कर सकता है! तुझे किससे ईर्ष्या है भला? तब नरेंद्र ने कहा- l envy the very dust under my Gurudev's feet. मुझे उस धूल से, उस माटी से ईर्ष्या होती है, जो मेरे ठाकुर के चरणों में बिछी रहती है!मुझे ईर्ष्या होती है उससे कि मैं इतना महीन क्यों नहीं हो पाया, इतना समर्पित क्यों नहीं हो पाया कि मैं गुरूदेव के चरणों में इस कदर बिछ जाऊं!
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी' 7897659218.
