*ज्ञान की अग्नि में मन कुंदन बन जाता है।*

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                            श्री आर सी सिंह जी 

*प्रश्न*-  गुरु महाराज जी कुछ दिनों पहले मेरे एक मित्र ने मुझसे प्रश्न किया था-  क्या तुम्हें कभी यह डर नहीं लगता कि मृत्यु के पश्चात तुम्हें नरक जाना पड़ा तो?  मैंने कहा-  नहीं, मुझे यह डर नहीं लगता,  क्योंकि ब्रह्मज्ञान  लेने के बाद यह तय है कि हम स्वर्ग में ही जाएंगे!  मैंने ठीक कहा न, महाराज जी?

*उत्तर* -  ब्रह्मज्ञान लेने मात्र से, आप स्वर्ग या उच्च लोकों के अधिकारी हो गए-  यह कहना तो ठीक नहीं!  क्योंकि ब्रह्मज्ञान लेने के पश्चात अगर आपने ठीक से साधना अभ्यास ही नहीं किया, अपनी निम्न वृतियों के वशीभूत होकर आचरण किया,  तो कैसे कल्याण संभव है?  इसलिए मात्र ब्रह्मज्ञान ले लेना पर्याप्त नहीं!  उसके पश्चात साधना- सुमिरन- सेवा द्वारा खुद में सकारात्मक परिवर्तन लाना भी जरूरी है!  ताकि आपके भीतर के विकार खत्म हों, दुर्गुणों का अंत हो!  ज्ञान की अग्नि में मन कुंदन बन सके!  आचरण पवित्र हो!  इस प्रकार जब आपके संपूर्ण व्यक्तित्व में बदलाव आएगा,  तभी आप स्वर्ग के अधिकारी हो सकते हैं,  वरना नहीं!और मैं तो कहूंगा कि स्वर्ग ही क्यों,  स्वर्ग तो  मात्र सुंदर मनोभावों के कारण एक नास्तिक सांसारिक को भी मिल सकता है! पर एक सच्चा साधक तो मृत्यु के पश्चात स्वर्ग से भी श्रेष्ठ परम धाम  का वासी होता है!  वह धाम जिसे शास्त्रों में अपवर्ग भी कहा गया है!  अ का अर्थ होता है नहीं, अतः अ+पवर्ग का अर्थ हुआ, एक ऐसा धाम जहां ना तो पतन है,  ना कर्मों के फल, ना बंधन न मौत का डर, यहां तक कि ना ही मुक्ति!  एक ऐसा दिव्य धाम, जहां पहुंचकर जीव पुन: जन्म मरण के आवागमन में नहीं फंसता! जिसके विषय में भगवान श्रीकृष्ण भी कहते हैं-  जहां जाकर पुन: लौटना नही होता, वही मेरा परम धाम है!वहां केवल आनंद ही आनंद है!  अलौकिक प्रकाश ही प्रकाश है!अर्थात वहां ना सूर्य प्रकाशित होता है, ना चंद्रमा, ना तारे और ना ही  बिजलियां!  फिर अग्नि की तो बात ही क्या है!उसके प्रकाशित होने पर ही यह सब  अनुप्रकाशित होता है!  यह सब उसके प्रकाश से ही प्रकाशित हो रहा है!  वह सर्वोत्तम धाम है! वही एक जीवात्मा का लक्ष्य है!  लेकिन इस धाम में प्रवेश पाने की प्रमुख शर्त है, ब्रह्मज्ञान व उसका अभ्यास!  केवल ब्रह्मज्ञान की साधना में रत साधक ही,  गुरु आज्ञा में सधे शिष्य ही परम-धाम में स्थान पा सकते हैं!

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

'श्री रमेश जी' 7897659218.

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