सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्ययह बात उस समय की है जब महाराज जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था! तब एक बहन कहती हैं- महाराज जी आप कितने महीनों से अस्वस्थ हैं! आपने हमारे ही कष्ट लिए हैं न महाराज जी? महाराज जी मौन रहे! शुन्य में देखते रहे!तब वह गुरु बहन कहती हैं महाराज जी, आप कष्ट बांट भी तो सकते हैं!महाराज जी ने उसी शून्यता में देखते हुए तब कहा था- मां कष्ट लेती है, देती नहीं! ऐसे ही एक बार एक प्रचारक भाई अपने विकारों के आगे हार गए! उन्हें लगने लगा नहीं, अब मैं इस पथ पर नहीं चल सकता! यही सब सोचकर वो भैया महाराज जी के पास पहुंचे! ओर बोले महाराज जी, मैं इस पथ पर और नहीं चल सकता! जिस विकार के लिए आप मुझे बार-बार समझाते हैं, क्षमा करते हैं, मैं बार-बार उसी दलदल में गिर जाता हूं!इसलिए आप मुझे अनुमति दें मैं यहां से जाना चाहता हूं! महाराज जी ने बड़े वात्सल्य से कहा यह पथ छोडने के लिए नहीं है! यह जीवन दोबारा नहीं मिलेगा! संसार में कुछ नहीं रखा! अनेक जन्म इन्हीं विषय विकारों में तुमने गंवाए हैं! यह जन्म गुरु के महान मिशन को देना है! वो भैया बोले, महाराज जी मैं भी यही चाहता हूं! लेकिन मैं बड़ा विवश हूं अपने विकारों के आगे! मेरे से नहीं होता है!मैं नहीं कर पा रहा हूं! मुझे जाने की अनुमति दें महाराज जी! महाराज जी ने कहा तुम्हारे जाने से जो इतने लोगों में संशय जन्म लेगा, कितने लोगों की श्रद्धा डांवाडोल होगी, उस पाप का बोझ उठा पाओगे? उन्होंने कहा महाराज जी, मैं कागज पर लिख कर चला जाता हूं! उसमें मैं अपनी कमियां अपने विकार सब लिख दूंगा कि मैंने गुरु दरबार में पाप किया, और मेरे गुरु ने मुझे इतनी बार क्षमा किया! महाराज जी उस भैया के नजदीक आए, अपना हाथ उठाया और अंगुली अपने सीने पर रख कर कहा- मिशन को तो बचा लेगा तू, पर मेरा क्या होगा? मेरा! जो मैंने तुझसे प्यार किया है, उसका क्या होगा? उन भैया को उस पल लगा कि धरती फट जाये और वो उसमें समा जाए! ग्लानि से भर उठे वो! नफरत हो गई उन्हें अपने विकारों से! उन्होंने महाराज जी के चरणों में प्रणाम किया और कमरे से बाहर चले गए और आज अपने सभी विकारों को जीत कर वो इस दरबार में हैं!यह जीत उन्हें दिलवाई महाराज जी के प्रेम ने!उनकी करुणा ने, उनके वात्सल्य ने, उनके ममत्व ने!
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी' 7651806463.
