किरिपा क कइ द माई भक्तन पर '
दे द अशिषवा दुआर तुहरे अइलीं ।
हरि ल सबके दरदवा ' दुआर तुहरे अइलीं ।
गारल कपड़वा जस जिनगी हमार बा .
ओहू पर लोगन के हमसे बोखार बा ;
पड़ते समनवा सब मुह फेरि ले ला '
कोचेलें रोज लोग जाहिल गंवार बा ।
जियरा पर ताना क बरसे सटकवा ' दुआर तुहरे अइलीं ।
हरिल सबके दरदवा दुआर तुहरे अइलीं ॥
अँसुअन क बोझ ढोवत कइसो जियत बानी,
मंगले पर मिले नाईं बूँद भर पानी ;
फटहा कपड़वा पर लदल मइलिया ,
ढोवत बानी जिनगी क आपन कहानी |
घिसटि घिसटि रोज ढूढ़ी नवका असरवा , दुआर तुहरे अइलीं ।
हरिल सबके दरदवा दुआर तुहरे अइलीं ॥
अब ते बा माई बस तुहरे सहारा .
कहीं नाईं ठौर सब कइलस किनारा ;
जिनगी क नइया अब तुहरे हवाले .
चाहे डुबाव चाहे बनव शिकारा ।
हाथ जोड़ीं ' पइयाँ पड़ी बिगड़ल सुधा र ' दुआर तुहरे अइलीं ।
हरिल सबके दरदवा दुआर तुहरे अइलीं ॥
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बहुत सुंदर रचना
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