*यदि हमारे मन में गुरु के प्रति कोई संसय उठे तो ध्यान की गहराई में जाकर ईश्वर से प्रेरणा लेनी चाहिए।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

 

                               श्री आर सी सिंह जी 

घटना उस समय की है, जब त्रेतायुग में मेघनाथ ने प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश में बांध लिया!  उस समय समस्त वानर दल बहुत व्याकुल हो उठा!  श्रीराम और लक्ष्मण नागपाश में बंधे हुए थे!  वानर दल चारों और  से उन्हें घेरकर विलाप करने लगे! किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था! समस्त वानर दल की दशा बहुत दयनीय थी!क्योंकि जिनके बल पर वे सभी समुन्दर पार कर लंका तक पहुंचे, जिन पर भरोसा कर वे रावण जैसे मायावी राक्षस से लड़ने उसके द्वार तक आ गये, आज वही श्रीराम और लक्ष्मण मूर्छित हो भूमि पर असहाय पड़े थे!  ये कैसी परीक्षा की घड़ी थी!गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि यह दृश्य इतना हैरान कर देने वाला था कि देवता भी भयभीत हो उठे कि अब क्या होगा!  क्या रावण का वध नहीं होगा?  क्या ईश्वर का अवतरण विफल चला जाएगा! परन्तु इन सब के बीच एक पात्र ऐसा भी था,  जो यह जानता था कि यह प्रभु की लीला मात्र है!  उन्हें मूर्छित करने की शक्ति तो तीनों लोकों में किसी की नहीं है, फिर मेघनाथ की क्या बिसात!इसलिए नारद जी गरूड़ जी को नागपाश काटने के लिए बुला लाए!लेकिन गरूड़ प्रभु राम को नागपाश में बंधा देखकर संशय में पड़ गये!  अरे क्या ये भगवान हो सकते हैं?  जो खुद ही बंधन में पड़ गये हों, वे भला दूसरों के बंधन कैसे खोलेंगे? तब गरूड़ जी अपने मन के इस संशय को मिटाने के लिए भगवान शिव की शरण में जाते हैं।  जहां से उन्हें ये प्रेरणा मिलती है!कि दीर्घकाल तक सतसंग करने से ही मन के संशय समाप्त हो जाते हैं और वहां सुन्दर हरि कथा सुना जाए,  जिसे मुनियों ने अनेक प्रकार से गाया है!उसके पश्चात गरूड़ जी काकभुशुंडि जी के पास जाकर प्रभु की दिव्य लीलाओं को श्रवण कर संशय मुक्त होते हैं!  कहने का भाव यह है कि यदि हमारे मन में भी कोई संशय उठने लगे, तो हमें ध्यान की गहराइयों में उतर कर ईश्वर से प्रेरणा लेनी चाहिए!

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

'श्री रमेश जी'

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