सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीसंसार के अधिकतर लोग स्वर्ग नरक शब्दों में उलझ जाते हैं। देखिए, प्रकृति के भोग्य पदार्थों का अभाव होना या पदार्थों की उपलब्धता होने पर भी मनुष्य की स्थूल इंद्रियों का कमजोर होना ही नरक है। दूसरी ओर प्रचुर मात्रा में पदार्थो की उपलब्धता का होना व स्थूल इंद्रियों द्वारा इन पदार्थो का भोग कर पाना ही स्वर्ग है। लेकिन दोनों ही स्थितियों में अक्सर मन में बेचैनी तो बनी ही रहती है। यह बेचैनी किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहने से धीरे-धीरे जाती है। फिर भी मनुष्य पदार्थों के संग्रह के लिए कर्म ही नहीं विकर्म भी कर लेता है। इस पर हम सभी को चिंतन करना चाहिए।
भौतिक प्रकृति के 84 लाख योनियों के सभी असंख्य जीवों के सभी स्थूल शरीर कच्चे घड़े के समान है, जो कभी भी टूट सकते हैं। केवल मनुष्य योनि में ही हम आध्यात्मिक उन्नति करते करते परमात्मा को पा सकते हैं। इसलिए इस स्थूल शरीर का सदुपयोग करते हुए हमें जीवन में किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर सदा ही ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए। क्योंकि ध्यान सत्संग करने से ही हमारा सूक्ष्म और कारण शरीर पवित्र होती है।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी'

सूक्ष्म शरीर कारण शरीर में परिवर्तन होना किस बात का द्योतक है आखिर शरीर तो दोनों होगा।
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