सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीकिसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु के सान्निध्य में गए बिना आध्यात्मिक ज्ञान नहीं मिलता है। इसलिए अक्सर ज्ञान के एम अभाव में साधारण मनुष्यों के अधिकांश कर्म सकाम भाव से केवल स्वयं के सुख के लिए होते हैं। अर्थात रजोगुण में रहकर ही कर्म होते हैं। क्योंकि ज्ञान मिलने पर ही सतोगुणी स्थिति बनती है। लम्बे समय तक अज्ञानता की स्थिति बने रहने से पाप कर्म कब होने शुरु हो जाते हैं, हमें स्वयं को भी पता नहीं चलता। इसलिए पाप कर्मों से बचने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए। अन्यथा पाप कर्मों से बच पाना मुश्किल हो जाता है।
प्रकृति के लगभग सभी साधारण मनुष्यों की विषय भोगों में रुचि बनी ही रहती है। फिर निरंतर विषय भोगों को भोगने वाला इंसान प्रमाद रूपी प्रकोप से बच नहीं सकता। फिर प्रमाद ही धीरे धीरे आलस्य और मोह को जन्म देता है, जो हमें तमोगुण की गहरी खाई में लाकर गिरा देता है। फिर यह तमोगुण ही हमें अध्यात्म में जुड़ने से रोकता है।
इसलिए हमें आरंभ से ही अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति को अधिक महत्व देते हुए ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए, जिससे हमारा मानव जीवन सार्थक हो जाए।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"
