*सत्संग करते रहने से विवेक शक्ति जगने लगती है।*

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

सैद्धान्तिक रूप से हम सभी आत्मायें ज्ञानस्वरूप ही हैं। लेकिन सत्संग के अभाव में एक साधारण मनुष्य अपने जीवन के अधिकांश कर्म सकाम भाव से स्वयं के भोग के लिए या परिवार के सुखों की प्राप्ति के लिए प्रकृति के रजोगुण में स्थित होकर कर्म करता है। फलस्वरूप मनुष्य भोगों से बाध्य होता हुआ  तमोगुण में गिरता हुआ पाप-कर्म करने से भी नहीं हिचकिचाता। यह स्थितियाँ तभी बनती हैं, जब मनुष्य सत्संग नहीं करता।  जिसके कारण मन-बुद्धि सात्विक न रहते हुए राजसी-तामसी ही बने रहते हैं, जो आत्मा का ज्ञान आवर्त करते जाते हैं।  लेकिन निरन्तर श्रद्धापूर्वक सत्सँग करते रहने से सात्विक बुद्धि में विवेक-शक्ति जगने लगती है, जो मन को भी सात्विक बनाती है। और क्रमशः निष्काम कर्म करवाने लगती है, जो  हमारे मन, बुद्धि, संस्कारों को शुद्ध करते हुए आत्मा को  मूल स्थिति यानी ज्ञानस्वरूप में ले आते हैं।  इसके भाव को समझ कर अपनी ज्ञानमयी स्थिति को मजबूत बनायें।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

"श्री रमेश जी"

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