सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीयदि हम ध्यान से देखें, तो हर युग चाहे सतयुग हो या त्रेता या द्वापर एक कहानी के बनने जैसा ही तो था! और इन रंगमंचों के निर्देशक कौन थे?रंगनाथ यानी सद्गुरु रूप में अवतरित भगवान! यदि द्वापर की बात करें, तो कौरवों और पांडवों को कुरुवंश के राजकुमार बनने या कहें किरदार निभाने का अवसर मिला दोनों को अपना पक्ष निभाने की स्वतंत्रता थी!पांडवों ने धर्म के पक्ष में खड़े होने की भूमिका निभाई! वहीं कौरवों ने अपने पात्र को अधर्मी होकर निभाया! कौरव विचारों के निम्न स्तर तक जा पहुंचे! उन्हीं विचारों ने जब कर्म का रूप लिया, तो महाभारत हुआ! इस संपूर्ण रंगमंच के रंगनाथ बने भगवान् श्री कृष्ण! दोनों ही पक्ष परिणाम से अनभिज्ञ थे परिणाम को जानने वाले तो केवल श्री कृष्ण थे!इसलिए वही हुआ जैसा उन्होंने सोच रखा था!अधर्म पर धर्म की विजय!पर चूंकि पांडवों ने पूर्ण रूप से खुद को भगवान के हाथों समर्पित कर दिया, जैसा उन्होंने करने को कहा, वही किया!अपनी इच्छा नहीं चलाई, इसलिए वे महाभारत के रंगमंच के नायक बन गये! वहीं कौरव, जो अपने मन के अनुुसार चले, वे हार गये! ठीक इसी तरह हम ने भी अपने आप को पूरी तरह से समर्पित किया है हमारे सद्गुरु श्री आशुतोष महाराज जी को! क्योंकि एक शिष्य जब गुरुदेव पर विश्वास कर एक कदम उठा लेता है, तो गुरुदेव भी उसके विश्वास को हारने नहीं देते! युद्ध से पहले जब अंगद रावण के पास संधि का अंतिम प्रस्ताव लेकर गए, तो रावण ने कहा - अरे अंगद! कितने भोले हो तुम! तुम उसका साथ दे रहे हो, जिसने तुम्हारे पिता बालि को छिप कर मारा! जिसने तुम्हारे पिता के दुश्मन सुग्रीव का साथ दिया! यह राम का षड्यंत्र है कि तुम्हें यहां भेज कर मरवा दिया जाए, तुम्हारा राज्य ले लिया जाए! जब अंगद ने यह बात सुनी तो उसकी बुद्धि डोली नहीं उसका अडोल विश्वास था श्रीराम पर! इसी विश्वास के चलते उसने यह कह दिया, हे रावण, यदि तू मेरा यह पैर हटा सके तो मैं अपने स्वामी की ओर से वचन देता हूं कि वे युद्व किये बिना ही अपनी हार मान लेंगे! क्या सच में अंगद के पैर में इतनी शक्ति थी? जिस रावण ने महादेव के कैलाश को उठा लिया, वह एक नवयुवक अंगद के पैर को नहीं उठा सकता था क्या? बिल्कुल उठा सकता था! पर अंगद के विश्वास से रोपित उस पैर में श्रीराम का चरण सम्मिलित था! इसलिए विश्वास एक शिष्य के निर्माण की नींव है!क्योंकि विश्वास श्रद्धा को जीवित रखता है! इसलिए हर हाल में अपने गुरुदेव पर विश्वास बनाए रखें!
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"
