*सत्गुरु जिज्ञासु के अंत:करण में ब्रह्म रूपी अद्भुत रहस्य को प्रकट करते हैं।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

जो इस सृष्टि के रचयिता हैं- ब्रह्मा, वो भी हजारों दिव्य वर्षोंं तक ध्यान में लीन रहे यह जानने के लिए कि इस सृष्टि के कण-कण में और मुझमेंं जो जीवन बनकर स्पंदित होती है, वह चेतन सत्ता कौन है? इस रहस्य को  जानने की जिज्ञासा को ही हमारे उपनिषदों में कह दिया  गया- अथातो ब्रह्म जिज्ञासा!  एक बार एक प्रचारक भाई ने महाराज जी से पूछा- महाराज जी!आज कुछ वैज्ञानिकों  की कॉन्फ्रेंस में जाना है!  तो उनके सामने ईश्वर को क्या कहकर सम्बोधित करना चाहिए?  महाराज जो ने कहा- मिस्टिक, क्योंकि ब्रह्म ही सबसे बड़ी मिस्ट्री है!  रहस्य है!

ऐसे ही एक बार किसी बहन ने महाराज जी से कहा महाराज जी!  हम डिस्कवरी चैनल पर देखते हैं कि कैसे ये जो वैज्ञानिक, खोजी लोग होते हैं ये अपना पूरा जीवन किसी पशु, पक्षी, पेड़ पोधे को जानने में लगा देते हैं!  इस खोज में ये इतना डूबे रहते हैं कि कोई पाप कर्म करते ही नहीं!  फिर इनका जीवन तो अच्छा है न?  महाराज जी एकदम से बोले खाक अच्छा है!  पूरा जीवन खाक ढूंढने में लगा दिया!भगवान् ने यह मानव जीवन सृष्टि खोजने के लिए नहीं, सृष्टि के मालिक ब्रह्म को खोजने के लिए दिया था!  उन्हें तो सबसे बड़े रहस्य को खोजना था वो छोटी मोटी खोजों में ही उलझे रह गये!  और इस सबसे बड़े आश्चर्य को जनमानस के अंतस में उद्घाटित करने के लिए ही भगवद सत्ता गुरु रूप में इस धरा पर अवतरित होती है! वर्तमान समय में श्री आशुतोष महाराज जी भी अपनी शरण में आए हुए हर सच्चे जिज्ञासु के अंत:करण में ब्रह्म रुपी अद्भुत रहस्य को प्रकट करते हैं।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

"श्री रमेश जी"

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