सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीस्वामी रामतीर्थ जी एक दृष्टांत सुनाया करते थे कि
पुराने समय की बात है।भारत के किसी मंदिर में एक श्रद्धालु मिठाई बांट रहा था। एक व्यक्ति ने उससे इसका कारण पूछा। उसने बताया कि मेरा घोड़ा कहीं खो गया है। इसी खुशी में मैं मिठाई बांट रहा हूं। उस व्यक्ति ने हैरान होकर पूछा अरे भाई। तुमने अपना घोड़ा खोया है और तुम खुशी मना रहे हो? श्रद्वालु बोला- अरे तुम समझे नहीं। मैंने कहा है कि घोड़ा खोया है, उस घोड़े पर सवार व्यक्ति नहीं। क्या यह खुशी की बात नहीं? उस व्यक्ति ने कहा कि तुम्हारे कहने का अर्थ क्या है? उसने बताया कि मैं कहीं से जा रहा था। तब एक चोरों के दल ने मेरे घोड़े को चुरा लिया।सौभाग्यवश मैं उस समय घोड़े पर सवार नहीं था।इसलिए घोड़ा चला गया और मैं बच गया। है ना खुशी की बात। उसकी बात सुनकर मंदिर में उपस्थित सभी लोग हंसने लगे। कहने लगे देखो कितना सीधा और नासमझ है। यह कहानी सुनाकर स्वामी रामतीर्थ कहा करते थे कि दरअसल नासमझ वह श्रद्वालु नहीं बल्कि समाज के सर्वसाधारण लोग हैं। वे पल-पल स्वयं को खोकर घोड़े को बचाने में लगे रहते हैं। घोड़ा? याने हमारी सांसारिक उपलब्धियां। हमने भौतिक स्तर पर जो कारोबार किया, जितने भी पद हासिल किये, संबंध जोड़े, माया अर्जित की ये सब घोड़े के प्रतीक हैं। आज हम हर समय इस घोड़े को ही बचाने में लगे रहते हैं। इसी को सुरक्षित कर खुशियां मना रहे हैं। पर घोड़े पर सवार स्वयं को, अपने आत्मस्वरुप को खोते जा रहे हैं। अपने इस आध्यात्मिक स्वरूप को जानने पहचानने, आत्मज्ञान प्राप्त करने अथवा आत्मिक साधना करने की हमें कोई सुध ही नहीं है। हमें सोचना होगा कि मूर्ख कौन है? घोड़े को या घुड़सवार को बचाने वाला?
'सौजन्य- अखंड ज्ञान'
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी "
