*दर्शन न देकर भी प्रभु (महाराज जी) उद्धार करते हैं।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                     श्री आर सी सिंह जी 

अधिकतर कहा जाता है कि प्रभु के दर्शन करने से पाप कट जाते हैं, दुख मिट जाते हैं,उद्धार हो जाता हैं।

लेकिन कई बार भगवान के दर्शन न देने से भी उद्धार हो जाता है।

गोपियों को श्री कृष्ण ने मथुरा आने के बाद अनगिनत वर्ष तक दर्शन नही दिए अपनी मोहिनी साकार मूरत के। लेकिन उसी से उन सबका उद्धार हो गया था।

नूरमहल में एक पंजाब के प्रसिद्ध पाठ करने वाले बाबा जी महाराज जी के पास आए। महाराज श्री ने उनको दर्शन दिए, पास बिठाया, बातें की। आशीर्वाद दिया। वो बाबा जी महाराज जी से अगले हफ्ते फिर आने का कह गए। अगली बार जब वो नूरमहल आश्रम आए तो महाराज जी सुबह सुबह कहीं और चले गए थे।

वो स्वामी जी से request किए कि महाराज जी के दर्शन करने हैं।

स्वामी जी ने गुरु जी को फोन मिला कर प्रार्थना की दर्शन देने की। तो महाराज श्री बोले - "उन्हें कहो हृदय से अरदास करे गुरु के आगे दर्शन देने की। तो गुरु के दर्शन उन्हें मिल जायेंगे।"

स्वामी जी के कहने पर वो अंदर ही अंदर गुरु महाराज जी से अरदास करने लगे हृदय से दर्शन देने की। सुबह से शाम हो गई लेकिन गुरु महाराज जी नही आए। रात होती देख वो मायूस मन से वापिस चले गए पाठी बाबा जी। उनके जाने के बाद महाराज जी आश्रम आ गए नूरमहल।

स्वामी जी सब कुछ महाराज जी को बता दिए। महाराज जी अपने कमरे में विश्राम करने चले गए।

कुछ दिनों बाद अखबार में खबर छपी की वो बाबा जी गुजर गए। स्वामी जी अखबार लेकर महाराज के पास आए। महाराज जी को स्वामी जी कहे - महाराज जी आप यदि दर्शन दे देते उन्हें तो उनका कल्याण हो जाता।बेचारा गुजर गए आपके दर्शनों बिना।

इस पर महाराज जी बोले - हमारे दर्शन न देने से ही उसका उद्धार हो गया अब। उस दिन वो पूरे दिन हृदय से हमसे जुड़ा रहा अरदास के बहाने और हमें हृदय से पुकारता रहा दर्शन देने के लिए। सो उसके हृदय की मलीनता और पाप नष्ट हो गए। अब उसका उद्धार हो गया प्राण त्यागने से। लेकिन यदि हम उसे दर्शन दे देते तो वो हमसे शायद हृदय की गहराई से अरदास नही करता और भाव अर्पित नही कर पाता हृदय के हमारी याद में। सो उसका कल्याण संभव नहीं था तब।

यह अध्यात्म का बहुत गहरा रहस्य है। उसके दर्शन के प्यासे भक्त जब उसको हृदय से ज्यादा से ज्यादा पुकार रहे हैं, रो रहे हैं उसकी याद में, विरह में डूब रहे तो समझ लो पापों से बड़ी तेज गति से उद्धार हो रहा है ऐसे शिष्यों का।इसलिए  समाधि  में रहकर महाराज जी सबका उद्धार जल्दी जल्दी कर रहे हैं। जो ह्रदय से, अंतर से अब प्रभु से ज्यादा से ज्यादा जुड़ते जा रहे हैं।

तुम्हरी लीला तुम्हीं जानो,

और भला कोई क्या जाने।

जिसपर कृपा हो तेरी,

वही तुझे पहचाने।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

"श्री रमेश जी"

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