सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी56 साल की उम्र में दिवंगत हुए अरबपति स्टीव जॉब्स के आखिरी शब्द---
“मैं व्यापार जगत में सफलता के शिखर पर पहुंच गया हूं। दूसरों की नज़र में मेरा जीवन एक उपलब्धि है।
हालाँकि, काम के अलावा, मुझे कोई खुशी नहीं थी। अंत में, धन बस एक सच्चाई है जिसका मैं आदी हो गया हूँ।
इस क्षण मैं, अपने अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए और अपने पूरे जीवन को याद करते हुए, मुझे एहसास होता है कि जिस पहचान और धन पर मुझे इतना गर्व था, वह मृत्यु के सामने फीकी और महत्वहीन हो गई है।
आप अपनी कार चलाने या अपने लिए पैसे कमाने के लिए किसी को काम पर रख सकते हैं, लेकिन आप किसी को बीमारी सहने और आपके लिए मरने के लिए काम पर नहीं रख सकते।
खोई हुई भौतिक वस्तुएं मिल सकती हैं। लेकिन एक चीज़ है जो खो जाने पर कभी नहीं मिलती "ज़िंदगी"। हम अभी जीवन के जिस भी चरण में हैं, समय के साथ हमारा सामना उस दिन से होगा जब पर्दा बंद हो जाएगा।"
भगवत प्रेमियों, ईश्वर से जुड़कर रहें सभी से प्यार करें, उनके साथ अच्छा व्यवहार करें, उन्हें संजोना सीखें। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, और समझदार होते हैं, हमें धीरे-धीरे एहसास होता है कि 300 या 3000 की घड़ी पहनना दोनों एक ही समय देते है।
चाहे हम 5 लाख की कार चलाएं या 15 लाख की कार, मार्ग और दूरी समान है, और हम एक ही गंतव्य पर पहुंचते हैं।
हम जिस घर में रहते हैं वह चाहे 300 वर्ग फुट का हो या 3000 वर्ग फुट का - अकेलापन एक ही है।
आपको एहसास होगा कि आपकी सच्ची आंतरिक ख़ुशी इस दुनिया की भौतिक चीज़ों से नहीं आती हैं। चाहे आप प्रथम श्रेणी में उड़ान भरें या इकोनॉमी क्लास में, यदि विमान नीचे गिरता है, तो आप उसके साथ नीचे जाते हैं।
ईश्वर से जुड़कर ही जीवन जीने योग्य बनता है। सामान्य मानव जीवन में कुछ भी जीने योग्य नहीं है। पेट भरकर खाना खाना, नींद भरकर सोना, छल छद्म की दुनिया को अपना समझना, रात दिन मेहनत करके धन इकट्ठा करना और अंत में सबको यहीं छोड़कर चल देना। क्या इसी के लिए मानव जीवन मिला है?
नहीं, मानव जीवन एक अवसर है अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का। और हमारा लक्ष्य है ईश्वर को जानना और जानकर उनको पाने के रास्ते पर चलना। अगर हम ऐसा करते हैं तो ठीक है, नहीं तो फिर से 84 लाख के निम्न योनियों में जाने के लिए मजबूर होते हैं।
अतः किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए, जिससे मानव जीवन सार्थक हो जाए।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"
