सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी*5- स्कन्दमाता*
"सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।"
पंचम नवरात्र के दिन स्कन्दमाता की पूजा होती है। माँ का यह स्वरूप सात्विक शक्ति का प्रतीक है। माँ की गोद में उनका पुत्र स्कन्द है, जिन्हें देवताओं का सेनापति कहा जाता है। हम सभी जानते हैं कि जब तारकासुर के आतंक से देवतागण भयभीत थे तो उनका भय दूर करने के लिए सात्विक शक्ति के रूप में माँ ने उन्हें स्कन्द जैसा पुत्र प्रदान किया था। असुर का अर्थ अंधकार है, स्कन्द प्रकाश है। असुर अगर मृत्यु है, तो स्कन्द अमृत स्वरूप है। असुर अगर असत्य है, तो स्कन्द सत्य है।
इस प्रकार माँ यही प्रेरणा देती हैं कि तुम भी ज्ञान स्वरूप स्कन्द को अपना सेनापति बनाकर जीवन युद्ध जीत जाओ। और यह तभी संभव है जब हम किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते हैं।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी'
