सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी*7- कालरात्रि*
"एक वेणी जपाकर्णपूरा नग्ता खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।"
सातवें दिन इनकी पूजा होती है। माँ कालरात्रि का वर्ण काला है। उनके साथ काल का घनिष्ठ संबंध है। वास्तव में, काल क्या है? जो सब पदार्थों का विनाश करता है, वही काल है। वस्तुतः काल के गर्भ से ही सारे भूत पदार्थों की उत्पत्ति होती है तथा काल के गर्भ में ही सबका लय हो जाता है।
"काल: पचति भूतानि काल: संहरति प्रजा:।"
अतः जो काल के उपर प्रतिष्ठित है, जो नित्यसिद्धा महाशक्ति है, वही काली है। जो कालरूप जगत का आधार है - 'कालो ही जगदाधार:' आश्रय है, वही काली है। वे हमें मृत्यु के भय से मुक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देती हैं।
माँ कालरात्रि की पूजा के साथ आज बहुत सी मिथक बातें जुड़ी हुई हैं। अनेक लोग माँ को प्रसन्न करने के लिए भैंसे बलि चढ़ाते हैं। परंतु यह एक भयंकर व अक्षम्य पाप है। माँ कभी भी अपने भक्तों से इस प्रकार की बलि नहीं चाहती। अपितु हमारे शास्त्रों में विकार रूपी पशुओं की बलि देने को कहा गया है।
"कामक्रोधौ द्वौ पशु इमावेव मनसा बलिमर्पयेत।
कामक्रोधौ विघ्नकृतौ बलिं दत्वाजपं चरेत।।"
काम और क्रोध रूप दोनों विघ्नकारी पशुओं का बलिदान करके उपासना करनी चाहिए। यही शास्त्रोक्त बलिदान का रहस्य है।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी'
