सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीनिसंदेह हम सब जानना चाहते हैं कि महाराज जी समाधि से कब उठेंगे? वह पावन तिथि कौन सी होगी? हम सब अधीर हैं, इतने अधीर कि इन पंक्तियों को टॉप कर वह तिथि पढ़ना चाहते हैं। यह अनुभव चाकण, महाराष्ट्र में महाराज जी द्वारा दीक्षित एक गृहस्थी बहन को हुआ। वह सुबह साधना में बैठी हुई थी। उन्हें अपने अंतर जगत में चाकण शहर में स्थित संस्थान का आश्रम दिखाई दिया। आसन पर साक्षात गुरु महाराज जी विराजमान थे। उन्होंने महाराज जी को प्रणाम किया और फिर दोनों हाथ जोड़कर बोली- महाराज जी जब से आप समाधि में गए हैं, तब से आपने अपने असंख्य शिष्यों को अनगिनत अनुभवों में आकर यह बात कही है - हम समाधि में हैं और अवश्य ही लौट कर आएंगे। तुम सब धैर्य से हमारी प्रतीक्षा करो। परंतु महाराज जी आपने किसी भी अनुभव में अपने लौटने की तिथि नहीं बताई। इसका क्या कारण है?
यह सुनना था कि महाराज जी ताली बजा कर जोर से हंसे, जैसे वह अक्सर हंसते हैं। फिर बोले -तुम जानती हो, मैंने तारीख क्यों नहीं बताई? क्योंकि यदि मैं तारीख बता देता तो तुम सब क्या याद करते? तारीख को। तुम्हारी यादों से मैं निकल जाता। तुम्हें यदि किसी का इंतजार होता तो बस उस तारीख का। अच्छा बताओ क्या शबरी को उसके गुरुदेव ने यह बताया था कि उसकी कुटिया में श्री राम किस दिन आएंगे? नहीं। उन्होंने कहा था शबरी एक दिन तुझे दर्शन देने श्री राम अवश्य आएंगे। तू उनका इंतजार करना। यही कारण है कि शबरी रोज प्रातः जब उठती तो उसे लगता - हो सकता है आज प्रभु श्री राम मेरे द्वार पर आ जाएं। इसलिए वह प्रतिदिन पथ बुहारती। उसे फूलों से सजाती। उनके लिए फल लेकर आती। उसका पूरा जीवन ही राममय बन गया था। उसके यही भाव श्री राम को उसकी कुटिया तक खींच लाए। अब तुम बताओ तुम क्या चाहती हो? अपने हर पल को तिथिमय बनाना या शबरी की तरह राम (गुरु )मय बनाना? उस बहन जी ने तुरंत कहा- नहीं महाराज जी हम तो बस हर पल आपका स्मरण करना चाहते हैं। रोम रोम उस श्वास श्वास में आपका चिंतन चाहते हैं। हमारे लिए आपका यह कहना ही पर्याप्त है कि आप अवश्य लौट कर आएंगे। किस दिन आएंगे? किस पल आएंगे? अब हम आपसे यह नहीं पूछेंगे। हम तो हर पल आपका इंतजार करेंगे। आपकी राह में पलकें बिछा कर रखेंगे। शायद यही भाव हम सबके होंगे। हम सब गुरुमय होना चाहते हैं, तारीखमय नहीं!
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
