सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक बार स्वामी दयानंद सरस्वती के शिष्य गुरुदत्त से किसी ने कहा आप अपने गुरुदेव के महान जीवन चरित्र पर कोई पुस्तक क्यों नहीं लिखते?इससे उनके आदर्शों को समाज तक पहुंचाने में बहुत मदद मिलेगी! गुरुदत्त उस व्यक्ति की बात सुनकर कुछ लम्हों के लिए मौन हो गया, बल्कि कहीं खो ही गया। व्यक्ति ने गुरुदत्त को हल्का सा हिलाया और कहा - क्या हुआ? क्या आपको मेरा सुझाव सही नहीं लगा? गुरुदत्त ने संकल्प से भरी आवाज में उत्तर दिया मैं अवश्य लिखूंगा अपने गुरुदेव के जीवन चरित्र पर एक किताब! ऐसी किताब, जिसे पढ़कर दुनिया उनकी महिमा के आगे नतमस्तक होगी! मैं आज से यह प्रयास शुरू करूंगा। 6 महीने बाद उस व्यक्ति की भेंट दोबारा गुरुदत्त से हुई!उसने पूछा - पुस्तक कहां तक पहुंची? गुरुदत्त ने कहा कार्य अभी चल रहा है! मैंने पूरे उत्साह से प्रयास शुरू कर दिये हैं! 1 साल बाद उस व्यक्ति ने दोबारा पूछा क्या अभी तक लेखन कार्य पूरा नहीं हुआ? गुरुदत्त ने कहा मेरी कोशिश जारी है!2 वर्ष बाद उस व्यक्ति ने दोबारा कहा मैं आपकी पुस्तक पूरी होने का समाचार सुनने के लिए इंतजार करता रहा पर लगता है आप मुझे बताना भूल गए! खैर कोई बात नहीं पर अब जल्दी ही उसकी झलक दिखाइए! मैं उस किताब को देखने के लिए बहुत उत्सुक हूंँ!गुरुदत्त ने कहा जी मैं आपको बताना नहीं भूला! दरअसल अभी किताब पूरी नहीं हुई है! मैं जी तोड़ मेहनत कर रहा हूं। वह व्यक्ति हैरानी से गुरुदत्त को देखने लगा! मन ही मन सोचने लगा, इतनी लगन और धैर्य से लिखी गई किताब अवश्य ही समाज में क्रांति की लहर लाएगी!काफी महीने बीत जाने के बाद एक दिन गुरुदत्त के चेहरे पर अद्भुत चमक देख कर वह व्यक्ति बोल पड़ा, तो आखिरकार आपने अपने गुरुदेव की जीवनी लिखने में सफलता हासिल कर ली है, क्यों मैं सही कह रहा हूं ना? गुरुदत्त ने कहा जी देखिए, पुस्तक आपके सामने है! वह व्यक्ति बोला कहांँ है? गुरुदत्त ने कहा मैंने अपने गुरुदेव के अनमोल आदर्शों को, उनके श्री वचनों को कागज पर नहीं लिखा बल्कि ध्यान साधना की कलम से अपने अंत:करण पर लिखने का प्रयास किया है। मैंने पूरी कोशिश की है इस संसार को यह संदेश देने की कि मेरे गुरुदेव के वचन, उनका चरित्र, इतना महान है कि उसे जो भी अपने मन के कागज पर लिख लेता है, वह संसार के लिए प्रेरक पुस्तक बन जाता है!
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
