**पापी का अन्न**

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                   श्री आर सी सिंह जी 

भीष्म पितामह ने यह जानते हुए भी कि कौरव पांडवों के साथ सरासर अन्याय कर रहे हैं, युद्व में कौरवों का साथ दिया!दुर्योधन जब भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण कर रहा था, तब वह मूक दर्शक बने इस अधर्म को सहन करते रहे! अपने अंतिम समय में शर-शय्या पर पड़े भीष्म पितामह धर्मराज युधिष्ठिर के अनुरोध पर उपस्थित जनों को धर्म के मर्म का उपदेश दे रहे थे!द्रौपदी भीष्म पितामह के मुंह से धर्म के महत्व की बात सुनकर हंस पड़ी!भीष्म पितामह को समझते देर नहीं लगी कि पांचाली उनकी कथनी-करनी के अंतर को याद कर हंस रही है! भीष्म पितामह ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, बेटी द्रौपदी, तुम्हारा हंसना बिल्कुल सही है! मैं उस समय दुर्योधन का अन्न खाता था! धर्म शास्त्रों में कहा गया है पापी का अन्न खाने से बुद्धि मलिन हो जाती है! मेरी बुद्धि उसी पाप के अन्न के कारण मलिन हुई! दुर्योधन के अन्न से जो रक्त बना था, उसे अर्जुन के बाणों ने शरीर से बिल्कुल बाहर निकालकर मेरे शरीर को शुद्व कर दिया है! इसलिए मैं आज धर्म और न्याय की बात कहने का अधिकारी हो गया हूं!यह सुनकर द्रौपदी भीष्म पितामह के चरणों में नतमस्तक हो गई! 

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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