**पुष्प की भाव-गरिमा**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                  श्री आर सी सिंह जी 

महर्षि जाबालि ने पर्वत पर ब्रह्म कमल खिला देखा, तो उसकी शोभा और सुगंध पर मुग्ध हो कर वह सोचने लगे कि उसे शिव जी के चरणों में चढ़ने का सौभाग्य प्रदान किया जाए! ऋषि को समीप आया देख पुष्प प्रसन्न तो  हुआ, लेकिन साथ ही आश्चर्य व्यक्त करते हुए आने का  कष्ट उठाने का कारण भी पूछा!जाबालि बोले- तुम्हें शिव सामीप्य का श्रेय देने की इच्छा हुई, तो अनुग्रह के लिए तोड़ने आ पहुचा! यह सुनकर पुष्प की प्रसन्नता खिन्नता में बदल गई! महर्षि ने उसकी उदासी का कारण पूछा, तो  पुष्प ने कहा- शिव- सामीप्य का लोभ संवरण न कर सकने वाले इस जगत में कम नहीं! फिर देवता को पुष्प जैसी  तुच्छ वस्तु की ना तो कोई कमी है और न ही इच्छा! ऐसी स्थिति में यदि मैं तितलियों- मधुमक्खियों जैसे क्षुद्र कृमि -कीटकों की कुछ सेवा- सहायता करता रहता, तो सही नहीं था? आखिर इस क्षेत्र को खाद की भी तो आवश्यकता होगी, जहां मैं उगा और बढ़ा! ऋषि ने पुष्प की बेबाकी और भाव गरिमा समझी! उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उसे यथास्थान छोड़कर वापस लौट गए!

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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