**हमारा मन और चित्त विकारों का घर है। हमें अपने मन और चित्त को आत्मा में स्थित करना चाहिए।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।


हमारे मन या चित्त में कुछ संस्कार इतनी गहरी बैठी होती है, जो आसानी से नहीं जाती। महान विचारों के मिलने पर भी दूर नहीं होती। स्वयं श्री कृष्ण अर्जुन से गीता का संवाद करते हैं।उनकी समस्याओं को सुनते हैं और उसे अपने महान विचार देते हैं। लेकिन फिर भी अर्जुन अपने मानसिक अवसाद से बाहर नहीं निकल पाता। वह कहता है-- 'प्रभु! मुझे मालूम है कि आप जो कह रहे हैं, वह सत्य है। लेकिन हे मधूसूदन! मैं क्या करूँ?मेरा मोह मुझे गांडीव नहीं उठाने दे रहा। मैं क्या करूँ?

  'मैं क्या करूँ'? यह एक जीव की विवशता है, अपने संस्कारों और चित्त वृत्तियों के समक्ष। इस विवशता का हल कौन दे सकता है?

   आज का मनोविज्ञान मनोरोगी को नकारात्मक के स्थान पर सकारात्मक विचार मन में बिठाने को प्रोत्साहित करता है। लेकिन अगर मनोरोगी कहे कि मेरे न चाहते हुए भी बार बार गलत विचार मेरे अंदर जोर मारने लगते हैं। मैं मजबूर हूँ। तो मनोविज्ञान भी मौन हो जाता है।

  लेकिन हमारे जगदगुरु चुप नहीं होते। जगद्गुरु श्री कृष्ण ने कहा-- अर्जुन!बहुत हुआ! तेरा मन और चित्त विकारों का घर है।इसलिए हे पार्थ! अब तू इनसे उपर उठ! स्थूल शरीर से परे तेरी इन्द्रियाँ हैं- इन्द्रियों से परे तेरा मन व चित्त है और चित्त से भी परे एक श्रेष्ठ सत्ता स्वयं तेरे अंदर है। वह है, सूक्ष्म आत्मा!...हे पार्थ! 'आत्मवान भव'- तू इस आत्मा में स्थित हो जा। 'यतो यतो निश्चरति मनश्चंचलमस्थिरम्'-- जहाँ जहाँ तेरा चंचल मन, अस्थिर चित्त जाता है और पीड़ित होता है, तू उसे उस उस विचार से हटाकर बार बार अपनी आत्मा में स्थित कर।

  श्री कृष्ण ने अर्जुन को सिर्फ शाब्दिक उपदेश ही नहीं दिए, बल्कि उसके भीतर आत्म प्रकाश को प्रैक्टिकली प्रकट भी कर दिया। उसकी दिव्य दृष्टि जागृत कर दी और उसे आत्म ज्योति का दर्शन कराया। उसे ब्रह्मज्ञान प्रदान किया। फिर जैसे ही आत्म साक्षात्कार हुआ, मन चित्त आत्मा में स्थित हुए, अर्जुन कह उठा- 'नष्टो मोह: स्मृतिर्लब्धा'- हे जगद्गुरु!आप धन्य हैं! मेरे चित्त का सारा मोह नष्ट हो गया।

     वर्तमान में, 'गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी' भी जन जन को ब्रह्मज्ञान की दीक्षा दे रहे हैं। दीक्षा के समय ही साधक अपने अंदर आत्मज्योति का दर्शन करते हैं। इस आत्मज्योति के प्रकट होने पर जब हम उस पर ध्यान लगाते हैं- तो अपने आप हमारे विकार, नकारात्मक सोच और गलत संस्कार दूर होते जाते हैं।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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