**साधनों पर निर्भरता न रखें। स्व निर्भर बनें। आत्म निर्भर बनें।**

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

बात सन् 1857 की है, जब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की परिस्थिति बनी हुई थी।उन्हीं दिनों अंग्रेज सैनिकों ने एक नवाब के घर पर हमला बोल दिया। घर में एक मुख्य द्वार के अलावा एक गुप्त दरवाजा भी था।यह गुप्त दरवाजा नवाब साहब के शयन कक्ष में ही था। हमला होने पर सैनिक मुख्य द्वार से प्रवेश करने लगे। ऐसे में नवाब साहब को तुरंत गुप्त दरवाजे से बाहर निकल जाना चाहिए था। पर वे ठहरे नवाब... अपनी शाही आदत के गुलाम। हमले की सूचना मिलने पर भी नवाब साहब ने अपने जूते पहनने के लिए नौकरों को बुलाना शुरु किया।

  सैनिकों को अंदर आता देख सभी नौकर एक एक कर पीछे के दरवाजे से भाग खड़ा हुआ। अफसोस! नवाब साहब नौकरों को मदद के लिए बुलाते रह गए और उधर सैनिकों ने आकर उन्हें बंदी बना लिया।

   ठीक ऐसे ही आज हम भी कितने ही साधन अपने सुख के लिए इकट्ठा करते हैं।पर कब ये साधन हमें अपना गुलाम बना लेते हैं, हमें पता ही नहीं चलता।इसलिए साधनों पर निर्भरता न रखें। स्व निर्भर बनें। आत्म निर्भर बनें।क्योंकि आत्म निर्णय ही अंतिम निर्णय होता है।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

Post a Comment

Previous Post Next Post